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Last updated on Mar 22, 2025

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Latest संस्कृत वाङ्गमय MCQ Objective Questions

Top संस्कृत वाङ्गमय MCQ Objective Questions

संस्कृत वाङ्गमय Question 1:

निम्नलिखितसूक्ते∶ समुचितपदेन रिक्त स्थानं पूरयत∶

दुर्बलस्य .......... राजा।

  1. जनं 
  2. बलम्
  3. धनम्
  4. धर्मम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : बलम्

संस्कृत वाङ्गमय Question 1 Detailed Solution

प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - निम्नलिखित सूक्ति को उचित पद के द्वारा रिक्तस्थान की पूर्ति करके पूर्ण करो 

दुर्बलस्य .......... राजा।

स्पष्टीकरण - चाणक्यनीति में श्लोक वर्णित है - 

दुर्बलस्य बलं राजा, बालानां रोदनं बलम्।

बलं मूर्खस्य मौनित्वं, चौराणाम् अनृतं बलम् ।। (चाणक्य नीति) 

अर्थात् 'दुर्बलों का बल होता है राजा, बालकों का बल होता है रोना, मूर्खों का बल होता है शान्त रहना और चोरों का बल होता है झुठ बोलना।'

अतः स्पष्ट है कि दुर्बलस्य बलं राजा।

संस्कृत वाङ्गमय Question 2:

सुबन्धु की रचना है

  1. स्वप्नवासवदत्तम्
  2. मेघदूतम्
  3. वासवदत्ता
  4. अभिज्ञानशाकुन्तलम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : वासवदत्ता

संस्कृत वाङ्गमय Question 2 Detailed Solution

सुबन्धु-परिचय

  • सुबन्धु वासवदत्ता कथा के कवि है। उन्होने अपने सम्बन्ध में सुजनैकबन्धु के अलावा कुछ नही कहा है। अतः उनके व्यक्तिगत जीवन और व्यक्तित्त्व के सम्बन्ध में भी देश और काल की तरह अनुमान ही आधार है।
  • उनके ग्रन्थ से इतना अवश्य ही प्रकट होता है कि वे वैदिक धर्मावलम्बी थे।
  • वासवदत्ता के प्रारम्भिक दो श्लोकों में उन्होंने विष्णु और विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति की है। ग्रन्थ में अन्यत्र भी अन्य देवों की अपेक्षा भगवान् विष्णु या उनके अवतारों का स्मरण कुछ अधिक ही बार हुआ हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि वे वैष्णव थे।
  • परम भागवत गरुड़ध्वज गुप्त सम्राटों के सम्पर्क में रहने वाले सुबन्धु का विष्णु पदावलम्बी होना स्वाभाविक भी लगता है। लेकिन अन्य वैदिक देवों के प्रति भी उनका सहिष्णु भाव था। यह भी गुप्तों के प्रभाव का द्योतक है।
  • कवि ने भगवान शिव के प्रति भी भक्ति भाव प्रकट किया है। नास्तिक बौद्धमतावलम्बियों के प्रति उनका अनादर भाव भी स्पष्ट है। 

अतः 'वासवदत्ता' के रचनाकार 'सुबन्धु' है।

Additional Information'स्वप्नवासवदत्तम्' यह रचना भास की है तथा 'मेघदूतम्' और 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' के रचनाकार कालिदास है।

संस्कृत वाङ्गमय Question 3:

पंचविंशब्राह्मणस्य नामान्तरमस्ति 

  1. काण्व ब्राह्मणम्
  2. छान्दोग्य ब्राह्मणम्
  3. तवल्कार ब्राह्मणम्
  4. प्रौढ़ ब्राह्मणम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : प्रौढ़ ब्राह्मणम्

संस्कृत वाङ्गमय Question 3 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : पंचविंशब्राह्मण का अपर नाम क्या है?

ब्राह्मणग्रंथ :

  • यज्ञों एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भांति समझने के लिए ही इन ब्राह्मण ग्रंथों की रचना हुई।
  • 'ब्रह्म' का शाब्दिक अर्थ हैं- यज्ञ अर्थात् यज्ञ के विषयों का अच्छी तरह से प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ही 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहे गये।
  • ब्राह्मण ग्रन्थों में सर्वथा यज्ञों की वैज्ञानिक, अधिभौतिक तथा अध्यात्मिक मीमांसा की गयी है। 

ब्राह्मणग्रंथोंं के प्रतिपाद्य विषय :

  • ब्राह्मणग्रन्थों का मुख्य विषय यज्ञ का सर्वांगपूर्ण निरूपण है।
  • इस के साथ ही विश्वोत्पत्ति, गूढ कथाएँँ, उनका यज्ञ के विधि में प्रयोजन इसका विवरण ब्राह्मणग्रंथोंं में आता है।
  • विकल्पोंं में दिये हुए विषयोंं में से पुनर्जन्म, तीन लोक, आत्मास्वरूप का वर्णन यह विषय ब्राह्मणग्रंथोंं में आतेंं है। 

पंचविश - ब्राह्मण :

  • तांड्यमहाब्राह्मण, जिसका अपर नाम पंचविंशब्राह्मण (अर्थात २५ अध्यायों वाला) तथा प्रौढ़ ब्राह्मणम् भी है, प्राचीनतम ब्राह्मणों में से है और सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह सामवेद संहिता से संबंधित ब्राह्मणग्रंथ है
  • इसमें बहुत प्राचीन अनुश्रुतियाँ संकलित हैं और उसमें व्रात्यस्तोम विधि का वर्णन है जिसके द्वारा अनार्य भी आर्य-परिवार में सम्मिलित किये जा सकते थे।
  • षड्विंश ब्राह्मण (२६वाँ ब्राह्मण) यह पंचविंश ब्राह्मण का एक परिशिष्ट मात्र है। इसका अन्तिम भाग अद्भुत ब्राह्मण कहा जाता है

​अतः स्पष्ट है, 'प्रौढ़ ब्राह्मणम्' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

अतिरिक्त जानकारी : प्रत्येक संहिता के अपने ब्राह्मण ग्रंथ होतेंं है। उनका विवरण इस प्रकार है -  

संहिता

ब्राह्मणग्रंथ

ऋग्वेद

  • ऐतरेयब्राह्मण-(शैशिरीयशाकलशाखा)
  • कौषीतकी (शांखायन) ब्राह्मण (बाष्कल शाखा)

यजुर्वेद

  • शुक्ल यजुर्वेद :
    • शतपथब्राह्मण-(माध्यन्दिनीय वाजसनेयि शाखा)
    • शतपथब्राह्मण-(काण्व वाजसनेयि शाखा)
  • कृष्णयजुर्वेद :
    • तैत्तिरीयब्राह्मण
    • मैत्रायणीब्राह्मण
    • कठब्राह्मण
    • कपिष्ठलब्राह्मण

सामवेद

  • प्रौढ(पंचविंश) ब्राह्मण
  • षडविंश ब्राह्मण
  • आर्षेय ब्राह्मण
  • मन्त्र (या छांदोग्य) ब्राह्मण
  • जैमिनीय ब्राह्मण

अथर्ववेद

  • गोपथब्राह्मण (पिप्पलाद शाखा)

संस्कृत वाङ्गमय Question 4:

रामायणे शबरीकथा कस्मिन् काण्डे अस्ति?

  1. बालकाण्डे
  2. अरण्यकाण्डे
  3. किष्किंधाकाण्डे
  4. सुन्दरकाण्डे

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अरण्यकाण्डे

संस्कृत वाङ्गमय Question 4 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - रामायण मे शबरीकथा किस काण्ड में है?

संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य रामायण को माना जाता है।

रामायण - राम की कथा होने के कारण इस महाकाव्य को रामायण कहा जाता है। इस के रचनाकार वाल्मीकि  है।

लौकिक साहित्य की प्रथम रचना होने के कारण ही महर्षि वाल्मिकीवाल्मीकि  को आदिकवि तथा रामायण को आदिकाव्य कहा जाता है।

रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-

  1. बालकाण्ड - 77 सर्ग
  2. अयोद्ध्याकाण्ड - 119 सर्ग
  3. अरण्यकाण्ड - 75 सर्ग
  4. किष्किन्धाकाण्ड - 67 सर्ग
  5. सुन्दरकाण्ड - 68 सर्ग
  6. लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड) - 128 सर्ग
  7. उत्तरकाण्ड - 111 सर्ग


शबरीकथा प्रसंग रामायण के 'अरण्यकाण्ड' का भाग है, जिसमे प्रभू राम का वनवास, दण्डकारण्य, सीतहरण, जटायु-रावण युद्ध, राम-शबरी मिलाप ऐसे कुछ प्रसिद्ध प्रसंग हैं।

अततः उचित पर्याय अरण्यकाण्डे होता है।

संस्कृत वाङ्गमय Question 5:

आदिकाव्य रामायण के रचयिता कौन है?

  1. वेदव्यास
  2. वाल्मीकि 
  3. भवभूति
  4. भरतमुनि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : वाल्मीकि 

संस्कृत वाङ्गमय Question 5 Detailed Solution

संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य रामायण को माना जाता है।

रामायण - राम की कथा होने के कारण इस महाकाव्य को रामायण कहा जाता है। इस के रचनाकार वाल्मीकि  है।

लौकिक साहित्य की प्रथम रचना होने के कारण ही महर्षि वाल्मिकीवाल्मीकि को आदिकवि तथा रामायण को आदिकाव्य कहा जाता है।

विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।

रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-

  1. बालकाण्ड - 77 सर्ग
  2. अयोद्ध्याकाण्ड - 129 सर्ग
  3. अरण्यकाण्ड - 75 सर्ग
  4. किष्किन्धाकाण्ड - 67 सर्ग
  5. सुन्दरकाण्ड - 68 सर्ग
  6. लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड) - 128 सर्ग
  7. उत्तरकाण्ड - 111 सर्ग


अतः स्पष्ट है कि संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य रामायण के रचनाकार वाल्मीकि है।

संस्कृत वाङ्गमय Question 6:

भवभूति की रचना है-

  1. महावीरचरितम्
  2. ऋतुसंहारम्
  3. अभिज्ञानशाकुन्तलम्
  4. कुमारसंभवम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : महावीरचरितम्

संस्कृत वाङ्गमय Question 6 Detailed Solution

भवभूति ने अपने जीवन में 'महावीरचरितम्, मालतीमाधवम्, उत्तररामचरितम्' इन तीन नाटकों की रचना की है।

Important Points

कवि 

रचना

विधा 

भवभूति

महावीरचरितम्, मालतीमाधवम्, उत्तररामचरितम् 

नाटक

कालिदास

रघुवंशम्, कुमारसंभवम्

महाकाव्य

मेघदूतम्

खण्डकाव्य

ऋतुसंहारम्

मुक्तककाव्य

मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् 

नाटक

संस्कृत वाङ्गमय Question 7:

कालिदास का खण्डकाव्य कौन सा है?

  1. उत्तररामचरितम्
  2. विक्रमोर्वशीयम्
  3. मेघदूतम्
  4. ऋतुसंहारम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : मेघदूतम्

संस्कृत वाङ्गमय Question 7 Detailed Solution

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर रचनाएं की, जिसमें भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं संस्कृत साहित्य में ही नहीं अपितु समग्र साहित्यिक संसार में उन्हें कविकुलश्रेष्ठ तथा कविशिरोमणि माना जाता है।

प्रस्तुत विकल्पों में से 'मेघदूतम्' यह कालिदास का खण्डकाव्य है।

Hint

विकल्पों का स्पष्टीकरण -

विकल्पानुगत कवियों के रचनाओं का विवरण:-

कवि 

रचना

विधा 

भवभूति

महावीरचरितम्, मालतीमाधवम्, उत्तररामचरितम् 

नाटक

कालिदास

रघुवंशम्, कुमारसंभवम्

महाकाव्य

मेघदूतम्

खण्डकाव्य

ऋतुसंहारम्

मुक्तककाव्य

मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् 

नाटक

संस्कृत वाङ्गमय Question 8:

निम्नलिखित में से किस कवि ने नल और दमयन्ती की प्रणयकथा को आधार बनाकर महाकाव्य की रचना की है?

  1. कालिदास ने 
  2. श्रीहर्ष ने
  3. माघ ने
  4. भारवि ने

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : श्रीहर्ष ने

संस्कृत वाङ्गमय Question 8 Detailed Solution

नल और दमयन्ती की प्रणयकथा का वर्णन 'नैषधीयचरित्' महाकाव्य में हुआ है, जो श्रीहर्ष की रचना है - ​

कवि

रचना

कालिदास

कुमारसंभवम्, रघुवंशम्, मेघदूतम् ,ऋतुसंहार

श्रीहर्ष

नैषधीयचरितम्

माघ शिशुपालवधम्

भारवि

किरातार्जुनीयम्

 Additional Information

  • नैषधीयचरित, श्रीहर्ष द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है।
  • यह वृहत्त्रयी नाम से प्रसिद्ध तीन महाकव्यों में से एक है।
  • महाभारत का नलोपाख्यान इस महाकाव्य का मूल आधार है। 
  • श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि तथा दार्शनिक थे।
  • उनमें उच्चकोटि की काव्यात्मक प्रतिभा थी तथा वे अलंकृत शैली के सर्वश्रेष्ठ कवि थे।
  • वे शृंगार के कला पक्ष के कवि थे। महान कवि होने के साथ-साथ वे बड़े दार्शनिक भी थे।
  • ‘खण्डन-खण्ड-खाद्य’ नामक ग्रन्थ में उन्होंने अद्वैत मत का प्रतिपादन किया।

संस्कृत वाङ्गमय Question 9:

भास विरचित एकाङ्की है - 

  1. पञ्चरात्रम्
  2. अभिषेकनाटकम्
  3. दूतवाक्यम्
  4. बालचरितम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : दूतवाक्यम्

संस्कृत वाङ्गमय Question 9 Detailed Solution

महाकवि भास संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य कवि हैं, जिन्होंने 13 रूपकों की रचना की है। जिनमें से कुछ नाटक है तो कुछ एकाङ्की।

Important Points

एकाङ्की - जिस रूपक में एक ही अङ्क में कथानक को व्यक्त किया गया हो उसे एकाङ्की कहते हैं। भास ने पांच एकाङ्की विरचित की है -

  • ऊरुभङ्गम्
  • दूतवाक्यम्
  • दूतघटोत्कचम्
  • कर्णभारम्
  • मध्यमव्यायोगः

अतः स्पष्ट है कि उपर्युक्त दिये विकल्पों में 'दूतवाक्यम्' भास विरचित एकाङ्की है।

संस्कृत वाङ्गमय Question 10:

यमक अलङ्कार होता है 

  1. सार्थक वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति 
  2. अनर्थक वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति 
  3. एक सार्थक दूसरा अनर्थक वर्णसमूह की पुनरावृत्ति 
  4. उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति

संस्कृत वाङ्गमय Question 10 Detailed Solution

जब कोई वर्ण समूह दो या अधिक बार आये और हर बार अलग अर्थ से आये तब  यमक अलंकार होता है, कभी शब्द के अंश की भी पुनरावृत्ति होती है जिसका स्वतन्त्र रूप से अर्थ नहीं होता वहा भी यमक अलंकार होता है इसलिए 'उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति' यह उचित पर्याय होगा

लक्षण -
“सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”

अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है। वहा एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।

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