Question
Download Solution PDF“पायँ महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, एड़ी मीड़ति जाय।।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त पंक्ति में भ्रांतिमान अलंकार है।
पायें महावर देन को नाइन बैठी आय।
फिरि-फिरि जानि महावरी, ऐड़ी भीड़त जाय।
- इसमें नायिका की लाल एड़ियों को देखर नाईन महावर समझकर रगड़ती है।
अतः यहाँ भ्रांति प्रतीत होती है।
अतः यहाँ भ्रांतिमान अलंकार है।
उपर्युक्त दोहा बिहारी जी का है।
भ्रांतिमान अलंकार-
जहाँ उपमान एवं उपमेय दोनों को एक साथ देखने पर उपमान का निश्चयात्मक भ्रम हो जाय अर्थात जहाँ एक वस्तु को देखने पर दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाए ,वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार-
जहाँ पर लोक - सीमा का अतिक्रमण करके किसी विषय का वर्णन होता है। वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण-
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि ।
सगरी लंका जल गई ,गये निसाचर भागि। ।
यहाँ हनुमान की पूंछ में आग लगते ही सम्पूर्ण लंका का जल जाना तथा राक्षसों का भाग जाना आदि बातें अतिशयोक्ति रूप में कहीं गई है।
विरोधाभास अलंकार-
इसके अंतर्गत एक ही वाक्य में आपस में कटाक्ष करते हुए दो या दो से अधिक भावों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण-
"मोहब्बत एक मीठा ज़हर है"
इस वाक्य में ज़हर को मीठा बताया गया है जबकि ये ज्ञातव्य है कि ज़हर मीठा नहीं होता। अतः, यहाँ पर विरोधाभास अलंकार की आवृति है।
विभावना अलंकार-
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
उदाहरण -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी॥
Last updated on May 12, 2025
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