इनमें से हास्य रस का उदाहरण कौन सा है:

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MP Police SI Official Paper 3(Held on : 27 Oct 2017 Shift 2)
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  1. सदा रहित पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।
  2. वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
    तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं।
  3.  तंबूरा ले मंच पर बेठे प्रेमप्रताप,
    साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
    घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
    धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।
  4. सोक बिकल सब रोवहिं रानी।
    रूपुसीलु बलु तेजु बखानी।।
    करहिं विलाप अनेक प्रकारा।।
    परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 :  तंबूरा ले मंच पर बेठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।
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MP Police SI Official Paper 1(Held on : 26 Oct 2017 Shift 1)
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Detailed Solution

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तंबूरा ले मंच पर बेठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।

पद्यांश में हास्य रस का भाव है. अत: सही विकल्प 3 है. अन्य विकल्प अनुचित उत्तर है.

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  • हास्य रस -  हास्य रस मनोरंजक है। आचार्यों के मतानुसार ‘हास्य’ नामक स्थाई भाव अपने अनुकूल , विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तब उसे हास्य कहा जाता है। सामान्य विकृत आकार-प्रकार वेशभूषा वाणी तथा आंगिक चेष्टाओं आदि को देखने से हास्य रस की निष्पत्ति होती है। यह हास्य दो प्रकार का होता है – १ आत्मस्थ तथा २ परस्य।

अन्य विकल्प 

  • सदा रहित पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे। - भक्ति रस 
  • वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
    सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
    तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं। - वीर रस 
  • सोक बिकल सब रोवहिं रानी।
    रूपुसीलु बलु तेजु बखानी।।
    करहिं विलाप अनेक प्रकारा।।
    परिहिं भूमि तल बारहिं बारा।। - करुण रस 

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 रस - रस काव्य का मूल आधार ‘ प्राणतत्व ‘ अथवा ‘ आत्मा ‘ है रस का संबंध ‘ सृ ‘ धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है जो बहता है , अर्थात जो भाव रूप में हृदय में बहता है उसे को रस कहते हैं।एक अन्य मान्यता के अनुसार रस शब्द ‘ रस् ‘ धातु और ‘ अच् ‘ प्रत्यय के योग से बना है। जिसका अर्थ है – जो वहे अथवा जो आश्वादित किया जा सकता है।  रस निष्पत्ति अर्थात विभाव अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से ही रस की निष्पत्ति होती है , किंतु साथ ही वे स्पष्ट करते हैं कि स्थाई भाव ही विभाव , अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से स्वरूप को ग्रहण करते हैं।

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