“कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई ! कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता।"

उक्त कथन किस रचनाकार का है?

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  1. हजारी प्रसाद द्विवेदी
  2. रामदरश मिश्र
  3. हरिशंकर परसाई
  4. शिवप्रसाद सिंह

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Option 1 : हजारी प्रसाद द्विवेदी
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“कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई ! कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता।-यह कथन हजारी प्रसाद द्विवेदी का है। 

कुछ अंश हैं-

  • कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई। कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता। ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परन्तु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परन्तु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब्न लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाँढ्स दिया है और हिम्मत बँधाई हैं।

Key Pointsक्या निराश हुआ जाए-

  • रचनाकार-हजारीप्रसाद द्विवेदी 
  • मुख्य-
    • इस पाठ के माध्यम से भारतवर्ष की स्थिति के बारे में बताया गया है। 
    • संसार में सभी तरह के लोग ह उनका जिक्र किया गया है। 
    • मनुष्यता की बात की गई है। 
    • विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से जीवन में निराश न होने की सिख दी गई है।

Important Pointsहजारीप्रसाद द्विवेदी-

  • जन्म-1907-1979 ई. 
  • रचनाएँ-
    • अशोक के फूल(1948 ई.)
    • कल्‍पलता(1951 ई.)
    • मध्यकालीन धर्मसाधना(1952 ई.)
    • विचार और वितर्क(1957 ई.)
    • विचार-प्रवाह(1959 ई.)
    • कुटज(1964 ई.) आदि। 

Additional Informationरामदरश मिश्र-

  • जन्म-1924-2015 ई. 
  • रचनाएँ-
    • कितने बजे हैं?
    • बबूल और कैक्टस
    • घर-परिवेश
    • छोटे-छोटे सुख आदि। 

हरिशंकर परसाई-

  • जन्म-1922-1995 ई. 
  • रचनाएँ-
    • पगडंडियों का जमाना(1966ई.)
    • जैसे उनके दिन फिरे(1963ई.)
    • सदाचार की ताबीज (1967ई.)
    • शिकायत मुझे भी है(1970ई.) आदि। 

शिवप्रसाद सिंह-

  • जन्म-1928-1998 ई. 
  • रचनाएँ-
    • शिखरों के सेतु
    • कस्तूरी मृग
    • चतुर्दिक आदि। 
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