वैदिक साहित्य MCQ Quiz in বাংলা - Objective Question with Answer for वैदिक साहित्य - বিনামূল্যে ডাউনলোড করুন [PDF]
Last updated on Mar 20, 2025
Latest वैदिक साहित्य MCQ Objective Questions
Top वैदिक साहित्य MCQ Objective Questions
वैदिक साहित्य Question 1:
ब्राह्मणानां मुख्यो विषयः कः अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 1 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद: ब्राह्मणों (ग्रंथों) का मुख्य विषय क्या है?
स्पष्टीकरण: ब्राह्मण ग्रथों का मुख्य विषय विधि संपादन है।
मुख्य बिन्दु:
- ब्राह्मण ग्रन्थ वरीयता के क्रम से वैदिक वाङ्ग्मय में द्वितीय स्थान पर आते हैं।
- यह ग्रन्थ वैदिक साहित्य का अभिन्न अंग हैं। इनकी भाषा भी वेदों के समान वैदिक संस्कृत ही है।
- ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञों एवं कर्मकाण्डों के विधान और क्रिया को समझने में सहायता प्रदान करते हैं।
- "ब्रह्म" शब्द का अर्थ यज्ञ अर्थात यज्ञों के विषय का अच्छी प्रकार से विधि-विधान पूर्वक प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ।
- ब्राह्मण ग्रंथों में गद्यात्मक शैली में यज्ञों के अनुष्ठानिक महत्त्व, देवतों के विषय में व्याख्या की गयी है। साथ ही मंत्रों पर भाष्य भी दिया गया है।
अतिरिक्त जांकारी:सभी वेदों के ब्राह्मण ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है:
- ऋग्वेद - ऐतरेय ब्राह्मण, कौषीतकि ब्राह्मण।
- सामवेद - प्रौढ़/पञ्चविश ब्राह्मण, षड्विश ब्राह्मण, आर्षेय ब्राह्मण, मन्त्र/छान्दोग्य ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण।
- यजुर्वेद:
- शुक्ल यजुर्वेद - शतपथ ब्राह्मण।
- कृष्णयजुर्वेद - तैत्तिरीय ब्राह्मण, मैत्रायणी ब्राह्मण, कठ ब्राह्मण, कपिष्ठल ब्राह्मण।
- अथर्ववेद - गोपथ ब्राह्मण।
वैदिक साहित्य Question 2:
बाष्कलशाखा कस्य वेदस्य विद्यते?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 2 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद- बाष्कल शाखा किस वेद की है?
स्पष्टीकरण- बाष्कल शाखा ऋग्वेद की है।
Key Pointsबाष्कल शाखा-
- शौनक के चरणव्यूह में ऋग्वेद की पाँच शाखाओं की तालिका है। ये शाखायें ये हैं- शाकल, बाष्कल, अश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन।
- वर्तमान समय में इनमें से शाकल और बाष्कल - दो शाखायें प्रचलित हैं।
- ऋग्वेद की बाष्कल शाखा में खिलानि हैं, जो शाकल शाखा में नहीं हैं। फिर भी वर्तमान में पुणे में सुरक्षित शाकल शाखा की एक कश्मीरी पाण्डुलिपि में खिलानि पाया गया है।
Additional Informationऋग्वेद-
ऋग्वेद वैदिक साहित्य का प्रथम ग्रन्थ है।
ऋक् या ऋच् का अर्थ है- स्तुतिपरक मंत्र, ‘ऋच्यते स्तूयते अनया इति ऋक्’। अर्थात् जिन मंत्रों के द्वारा देवों की स्तुति की जाती है, उन्हें ऋक् या ऋच् कहते हैं। ऋचाओं से युक्त वेद को ऋग्वेद कहते है।
ऋग्वेद के ऋत्विज का नाम होता है।
महाभाष्यकार पतंजलि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाओं का उल्लेख किया गया है। किन्तु शौनक के अनुसार ऋग्वेद की पाँच मुख्य शाखाएँ हैं- शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन, माण्डूकायन।
ऋग्वेद के प्रथम भाष्यकार स्कन्दस्वामी हैं।
ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त तथा 10580 मन्त्र हैं।
Confusion Pointsखिलानि- ऋग्वेद के उन ९८ 'अनाम' मंत्रों के समूह को खिलानि कहते हैं जो वाष्कल शाखा में विद्यमान हैं किन्तु शाकल शाखा में नहीं। ऐसा माना जाता है कि ये ऋग्वेद में बाद में जोड़े गये किन्तु फिर भी वैदिक संस्कृत के मंत्रकाल के हैं।
वैदिक साहित्य Question 3:
ईशावास्योपनिषत् कस्य वेदस्य सम्बन्धिनी ?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 3 Detailed Solution
प्रश्न की हिन्दी - ईशावास्योपनिषत् किस वेद से सम्बन्धित है?
स्पष्टीकरण -
- उपनिषत्/उपनिषद् - उपनिषद् उसे कहते हैं - जिसमें आत्मज्ञान/मोक्ष के विषय में चर्चा प्राप्त होती है। “वेदानामन्तिमो भाग उपनिषद्” अर्थात् वेदों के अन्तिम भाग को उपनिषद् कहा गया है। इसे ज्ञानकाण्ड के नाम से भी जाना जाता है। ईशावास्योपनिषत् शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित है। अतः शुक्ल यजुर्वेद सही उत्तर होगा।
Additional Information
मुख्यतः 11 उपनिषत् ही प्राप्त होते हैं। ये 11 उपनिषत् एवं उनसे सम्बद्ध वेदों की सूची निम्नलिखित हैं -
- विद्वानों के अनुसार - उपनिषदों की संख्या हजारों में थी, परन्तु वर्तमान समय में ये 11 उपनिषद् ही उपलब्ध है।
वैदिक साहित्य Question 4:
"तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत∶ ऋच∶ सामानि जज्ञिरे" इदं वाक्यं कुत्र अस्ति ?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 4 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - "तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत∶ ऋच∶ सामानि जज्ञिरे" यह वाक्य कहाँ से है?
स्पष्टीकरण - 'त्रयी' के उत्पादक तीन अंश हैं -ऋक्, यजु: तथा साम। इन तीनों में ऋक् विशेष अभ्यर्हित या पूजनीय माना जाता है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति दोनों की अपेक्षा पहले हुई थी। इसका स्पष्ट उल्लेख वेद के अनेक स्थलों पर मिलता है। पुरुषसूक्त के मंत्र में ऋचाओं की ऋचाओं की उत्पत्ति प्रथमत: मानी गई है:
मन्त्र -
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥
पदच्छेद- तस्माद् यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे। छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद् यजस्तस्मादजायत॥
मन्त्र का अर्थ - उसी परब्रह्म से (ऋचः) ऋग्वेद, (यजुः) यजुर्वेद (सामानि) सामवेद और (छन्दांसि) इस शब्द से अथर्ववेद भी, ये चारों वेद उत्पन्न हुए हैं। इसलिये सब मनुष्यों को उचित है कि वेदों का ग्रहण करें और वेदोक्त रीति से ही चलें।
उपर्युक्त विवेचनों से स्पष्ट है कि "तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत∶ ऋच∶ सामानि जज्ञिरे" यह वाक्य पुरुषसूक्त का है।
वैदिक साहित्य Question 5:
वैदिक ऋषीणां मनुष्याणां हृदय-गुहा स्थित कः दृश्यति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 5 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : वैदिक ऋषि मनुष्य के हृदय-गुहा में स्थित क्या देखतेंं है?
संपूर्ण मंत्र :
अणोरणीयान्महतो महीयानात्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायां ।
तमक्रतुः पश्यति वीतशोको धातुः प्रसादान्महिमानमात्मनः॥ (कठोपनिषद, १.२०)
अर्थ - ''अणु से भी सूक्ष्मतर, महान् से भी महत्तर, 'आत्मतत्त्व' प्राणी की हृद्-गुहा में निहित है। जब मनुष्य अपने आपको कामादि संकल्पों से मुक्त एवं शोक से रहित कर लेता है तब वह 'उसका' दर्शन करता है। मानसिक प्रवृत्तियों की शुद्धि के प्रसाद से वह 'आत्म-सत्ता' की महिमा का दर्शन करता है।
अतः स्पष्ट है, 'आत्मा' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
वैदिक साहित्य Question 6:
शिवसङ्कल्पसूक्तस्य देवता कः अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 6 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : शिवसंकल्पसूक्त की देवता कौन है?
शिवसंकल्पसूक्त :
- शिवसंकल्पसूक्त शुक्ल यजुर्वेद का अंश (अध्याय ३४, मन्त्र १-६) है । इसे शिवसंकल्पोपनिषद् के नाम से भी जाना जाता है।
- सूक्त में छः मन्त्र हैं, जिनमें मन को अपूर्व सामर्थ्यों से युक्त बता कर उसे श्रेष्ठ व कल्याणकारी संकल्पों से युक्त करने की प्रार्थना की गई है।
- इसके हर मंत्र का अंत इस वाक्यांश के साथ होता है – “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु” अर्थात – “उस ईश्वरीय शुभ संकल्प में मेरा मन रमण करे।”
- यह सूक्त एक अद्भुत एवं गहन प्रार्थना है जिसके द्वारा मन अत्यंत शांत हो जाता है एवं साधक को अपने आत्म स्वरुप को पहचानने की क्षमता प्राप्त होती है।
- शिवसंकल्पसूक्त का संबंध भी मन से है। ईश्वर से की गई अपनी प्रार्थनाओं में वैदिक ऋषि कहते हैं कि वह उन्हें शारीरिक तथा वाचिक ही नहीं अपितु मानसिक पापों से भी दूर रखें। उनके मन में उठने वाले संकल्प सदैव शुभ व श्रेयस्कर हों। मनुष्य का मन अपूर्व क्षमतावान् है, उसमें जो संकल्प जाग जाएं, उनसे उसे विमुख करना बहुत कठिन कार्य है। इसीलिए ऋषि मन को शुभ व श्रेष्ठ संकल्पों से युक्त रखने की प्रार्थना करत्ते हैं।
अतः स्पष्ट है की 'मनोदेवताः' इस प्रश्न का सही उत्तर है।
वैदिक साहित्य Question 7:
वृत्रवधः कस्य प्रमुखं कार्यम् अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 7 Detailed Solution
- वृत्र के सर्प रुपी असूर था।
- वृत्र को अहि भी कहा जाता है।
- वह इन्द्र के प्रमुख शत्रुओं में से एक है।
- उसने नदीयों को बंदिस्त करके रखा था।
- इन्द्र ने वृत्रवध करके नदीयों को मुक्त किया।
- अतः इन्द्र को वृत्रघ्न इस नाम से संबोधित किया जाता है।
वैदिक साहित्य Question 8:
बौद्धदर्शनस्य शून्यवादी-सम्प्रदायः किं मतमनुसरति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 8 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - बौद्धदर्शन के शून्यवादी-सम्प्रदाय किस मत को अनुसरण करते है।
स्पष्टीकरण -
बौद्ध दर्शन -
- बौद्ध दर्शन से अभिप्राय उस दर्शन से है जो भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया और बाद में पूरे एशिया में उसका प्रसार हुआ।
- 'दुःख से मुक्ति' बौद्ध धर्म का सदा से मुख्य ध्येय रहा है।कर्म, ध्यान एवं प्रज्ञा इसके साधन रहे हैं।
- बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं।इसे त्रिपिटक कहते है।
- ये सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक कहलाते हैं।
- वसुबंधु (400 ई.), कुमारलात (200 ई.) मैत्रेय (300 ई.) और नागार्जुन (200 ई.) बौद्ध दर्शन के प्रमुख आचार्य थे।
बौद्धों के चार सम्प्रदाय -
- वैभाषिक मत बाह्य वस्तुओं की सत्ता तथा स्वलक्षणों के रूप में उनका प्रत्यक्ष मानता है। अत: उसे बाह्य प्रत्यक्षवाद अथवा "सर्वास्तित्ववाद" कहते हैं।
- सैत्रांतिक मत के अनुसार पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं, अनुमान होता है। अत: उसे बाह्यानुमेयवाद कहते हैं।
- योगाचार मत के अनुसार बाह्य पदार्थों की सत्ता नहीं। हमे जो कुछ दिखाई देता है वह विज्ञान मात्र है। योगाचार मत विज्ञानवाद कहलाता है।
- माध्यमिक मत के अनुसार विज्ञान भी सत्य नहीं है। सब कुछ शून्य है। शून्य का अर्थ निरस्वभाव, निःस्वरूप अथवा अनिर्वचनीय है। शून्यवाद का यह शून्य वेदांत के ब्रह्म के बहुत निकट आ जाता है।
Key Points
बौद्धों के इन चारों सम्प्रदायों में से प्रथम दो (वैभाषिक, सैत्रांतिक) का सम्बन्ध हीनयान से तथा अन्तिम दोनों (योगाचार, माध्यमिक) का सम्बन्ध महायान से है। हीनयानी सम्प्रदाय यथार्थवादी तथा सर्वास्तिवादी है। जबकि माध्यमिक सम्प्रदायों में से योगाचारी विचार को ही परम तत्त्व तथा परम रूप में स्वीकार करते हैं। माध्यमिक दर्शन एक निषेधात्मक एवं विवेचनात्मक पद्धति है। यही कारण है कि माध्यमिक शून्यवाद को 'सर्ववैनाशिकवाद' के नाम से भी जाना जाता है।
अतः बौद्धदर्शन के शून्यवादी-सम्प्रदाय महायान मत को अनुसरण करते है।
वैदिक साहित्य Question 9:
वेदान्तसारानुसारं 'तत्त्वमसि' इत्यत्र अखण्डार्थबोधकसम्बन्धः कतिविधः?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 9 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद- वेदान्तसार के अनुसार 'तत्त्वमसि' यहाँ अखण्डार्थ बोधक सम्बन्ध कितने प्रकार का है?
प्रश्नानुवाद- वेदान्तसार के अनुसार 'तत्त्वमसि' यहाँ अखण्डार्थ बोधक सम्बन्ध तीन प्रकार का है।
वेदान्तसार वेदान्त दर्शन का एक प्रकरण ग्रन्थ है। इसके रचनाकार सदानन्द योगीन्द्र है। वेदान्त दर्शन समस्त भारतीय दर्शनों में सबसे प्रमुख है। इसके प्रवर्तक आचार्य बादरायण है। इनके दारा कृत ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का आधार ग्रंथ है। ब्रह्मसूत्र पर लिखा गया आचार्य शंकर का शारीरिक भाष्य इस दर्शन का अद्भुत ग्रंथ माना गया है। प्रस्थानत्रयी के नाम से प्रसिद्ध उपनिषद्, गीता एवं ब्रह्मसूत्र सभी वेदान्त सम्प्रदायों का प्रमुख आधार ग्रंथ है। ब्रह्म और जीव का ऐक्य प्रतिपादन करना ही इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य रहा है। इस दर्शन में चार महावाक्य है जो भिन्न भिन्न उपनिषद एकत्र किए गये है-
- प्रज्ञानं ब्रह्म (ऐतरयोपनिषद्)
- तत्त्वमसि (छान्दोग्योपनिषद्)
- अहं ब्रह्मास्मि (बृहदारण्यकोपनिषद्)
- अयमात्मा ब्रह्म (माण्डूक्योपनिषद)
‘तत्त्वमसि’ छान्दोग्योपनिषद् से लिया गया महावाक्य है। इसके विषय में कहा गया है- इदं तत्त्वमसीतिवाक्यं सम्बन्धत्रयेणाखण्डार्थबोधकं भवति। सम्बन्धत्रयं विशेषणविशेष्यभावः प्रत्यगात्मलक्षणयोर्लक्ष्यलक्षणभावश्चेति। तदुक्तम् सामानाधिकरण्यं च विशेषणविशेष्यता लक्ष्यलक्षणसम्बन्धः पदार्थप्रत्यगात्मनाम् इति। अर्थात् यह तत्त्वमसि (वह तू है ) इत्यादि वाक्य तीन सम्बन्धों से अखण्ड अर्थ का बोध कराने वाला होता है। वे तीन सम्बन्ध निम्नवत् है-
- दो पदों का सामान्यधिकरण सम्बन्ध
- दो पदों के अर्थों का विशेषणविशेष्य भाव सम्बन्ध,
- आंतरिक आत्मा तथा उसको बताने वाला दोनों में लक्ष्यलक्षणभाव सम्बन्ध है।
वैदिक साहित्य Question 10:
वेदस्य मुखं कथ्यते
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 10 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - वेद का मुख कहा जाता है -
स्पष्टीकरण - वेद का मुख व्याकरण को कहा गया है। वेदों के लिए सायणाचार्य ने कहा है - अपौरुषेयवाक्यं वेदः। अर्थात् वेद वाक्य अपौरुषेय हैं, जिनकी रचना किसी पुरुष द्वारा नहीं की गयी है।
वेद का मुख व्याकरण है, इसके लिए एक प्रसिद्ध श्लोक है-
छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते।
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते॥
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्।
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥
अर्थ - छन्द वेद के पैर, कल्प - हाथ, ज्योतिष शास्त्र - चक्षु, निरुक्त - श्रोत्र, शिक्षा - घ्राण (नासिका) और व्याकरण - मुख है। उनके सम्यक् अध्ययन से ही ब्रह्मलोक प्राप्त होता है।
ये छः - छन्द, कल्प, ज्योतिष, निरुक्त, शिक्षा, व्याकरण वेद के अंग हैं। जिसके लिए श्लोक प्रसिद्ध है-
शिक्षा व्याकरणं छन्दो निरुक्तं ज्योतिषं तथा।
कल्पश्चेति षडङ्गानि वेदस्याहुर्मनीषिणः॥
अर्थ - शिक्षा, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष तथा कल्प ये छः विद्वानों द्वारा वेद के अंग कहे गये हैं।
अतः स्पष्ट है कि वेद का मुख व्याकरण है।