वैदिक साहित्य MCQ Quiz - Objective Question with Answer for वैदिक साहित्य - Download Free PDF
Last updated on Jun 12, 2025
Latest वैदिक साहित्य MCQ Objective Questions
वैदिक साहित्य Question 1:
कल्पसूत्राणामुचितः क्रमः चीयताम्
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 1 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - कल्प सूत्र का उचित क्रम चुनें।
स्पष्टीकरण -
कल्पसूत्र का उचित क्रम है - श्रौतसूत्रम्, गृह्मसूत्रम्, धर्मसूत्रम्, शुल्वसूत्रम्।
कल्पसूत्र -
कल्प वेद के छह अंगों (वेदांगों) में एक है जो कर्मकाण्डों का विवरण देता है।इन कल्पसूत्रों का प्रधान प्रतिपाद्य विषय है संस्कारों, यज्ञों और वर्णाश्रम धर्मों की व्याख्या, विधिविधान तथा अनुष्ठानचर्या। कल्प का तात्पर्य है - 'वेद (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यकादि) विहित कर्मो, अनुष्ठानों का क्रमपूर्वक कल्पना करनेवाला शास्त्र या ग्रंथ'। "कल्पो वेदविहितानां कर्मणमानुपूर्व्येण कल्पनाशास्त्रम्" (ऋग्वेदप्रातिशाख्य की वर्गद्वयवृत्ति)। कल्पसूत्रों का तीन मुख्य वर्गो में विभाजन किया गया है– (१) श्रौतसूत्र, (२) गृह्यसूत्र और (३) धर्मसूत्र। इसके अतिरिक्त (४) शुल्बसूत्र भी एक भेद हैं।
- श्रौतसूत्र - श्रौतसूत्र में मन्त्र-संहिता के कर्मकाण्ड को स्पष्ट किया जाता है।
- गृह्यसूत्र - गृह्यसूत्र में कुलाचार का वर्णन होता है।
- धर्मसूत्र - धर्मसूत्र में धर्माचार का वर्णन है।
- शुल्बसूत्र - शुल्बसूत्र में ज्यामिति आदि विज्ञान वर्णित है।
वैदिक साहित्य Question 2:
वेदाङ्गानामुचितं क्रमं चिनुत
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 2 Detailed Solution
प्रश्नार्थ - वेदांगो का उचित क्रम चुनिए-
वेदाङ्ग -
वेदाङ्ग की कुल संख्या 6 है, जिसका क्रम इस प्रकार है - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष।
मुण्डकोपनिषद में आता है-
तस्मै स हो वाच। द्वै विद्ये वेदितब्ये इति ह स्म यद्ब्रह्म विद्यौ वदंति परा चैवोपरा च॥ तत्रापरा ॠग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदोऽर्थ वेद: शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दोज्योतिषमिति। अथ परा यथा तदक्षरमधिगम्यते॥
अर्थात्, मनुष्य को ज्ञातव्य दो विद्याएं हैं - परा और अपरा। उनमें चारों वेदों के शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष - ये सब 'अपरा' विद्या हैं तथा जिससे वह अविनाशी परब्रह्म तत्त्व से जाना जाता है, वही 'परा' विद्या है।'
छः वेदाङ्ग -
- शिक्षा - वैदिक वाक्यों के स्पष्ट उच्चारण हेतु इसका निर्माण हुआ। वैदिक शिक्षा सम्बंधी प्राचीनतम साहित्य 'प्रातिशाख्य' है।
- कल्प - वैदिक कर्मकाण्डों को सम्पन्न करवाने के लिए निश्चित किए गये विधि नियमों का प्रतिपादन 'कल्पसूत्र' में किया गया है।
- व्याकरण - इसके अन्तर्गत समासों एवं सन्धि आदि के नियम, नामों एवं धातुओं की रचना, उपसर्ग एवं प्रत्यय के प्रयोग आदि के नियम बताये गये हैं। पाणिनि की अष्टाध्यायी प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ है।
- निरूक्त - शब्दों की व्युत्पत्ति एवं निर्वचन बतलाने वाले शास्त्र 'निरूक्त' कहलातें है। क्लिष्ट वैदिक शब्दों के संकलन ‘निघण्टु‘ की व्याख्या हेतु यास्क ने 'निरूक्त' की रचना की थी, जो भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।
- छन्द - वैदिक साहित्य में मुख्य रूप से गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। पिंगल का छन्दशास्त्र प्रसिद्ध है।
- ज्योतिष - इसमें ज्योतिष शास्त्र के विकास को दिखाया गया है। इसकें प्राचीनतम आचार्य 'लगध मुनि' है।
वैदिक साहित्य Question 3:
कस्य वेदस्य किमपि आरण्यकम् नास्त्येव?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 3 Detailed Solution
- व्युत्पत्ति की दृष्टी से आरण्यक शब्द अरण्य शब्द में वृञ् प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है।
- इसका अर्थ है अरण्य में होनेवाला वाला।
- 'अरण्ये भवमिति आरण्यकम्' ऐसे आरण्य का अर्थ बताया जाता है।
- आरण्यकों का मुख्य विषय यज्ञीय अनुष्ठानों के आध्यात्मिक मीमांसा है।
- ब्रह्मचर्य का निरन्तर अनुसरण करने वाले आरण्यकों का अध्ययन करने के अधिकारि हैं।
- ऋग्वेद
- ऐतरेय आरण्यक
- कौषीतकि आरण्यक या शांखायन आरण्यक
- सामवेद
- तवल्कार (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
- छान्दोग्य आरण्यक
- यजुर्वेद
- शुक्ल
- वृहदारण्यक
- कृष्ण
- तैत्तिरीय आरण्यक
- मैत्रायणी आरण्यक
- अथर्ववेद
- यद्यपि अथर्ववेद का पृथक् से कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता है, तथापि उसके गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री मिलती है।
वैदिक साहित्य Question 4:
'आर्चज्योतिष' इत्यस्य ज्योतिषवेदांगस्य प्रणेता कः ?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 4 Detailed Solution
- लगध मुनि का आर्चज्योतिषवेदाङ्ग ज्योतिष का ग्रन्थ है।
- इसे सर्वाधिक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ माना जाता है।
- विविध वेदों के विविध ज्योतिष ग्रन्थ हैं।
वैदिक साहित्य Question 5:
अग्नेर्निर्वचनमिदम् नास्ति
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 5 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : यास्कसंमत अग्नि का निर्वचन क्या नहीं है?
अग्नि शब्द का निर्वचन:
'अग्निः कस्मात्?'
- अग्रणीर्भवति' - यह अग्रणी होता है यह मनुष्यों का इतना अधिक उपकार करता है कि सभी देवों में प्रमुख हो जाता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- 'अग्र यज्ञेषु प्रणीयते' - यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में यह सबसे पहले लाया जाता है। यज्ञों में सबसे आगे लाये जाने के कारण अग्रणी होता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- अङ्गं नयति सन्नममानः - यह तृण, काष्ठ इत्यादि को आश्रय देता हुआ भी उसे अपना अङ्ग बना लेता है, अतः अग्नि कहलाता है। जिस भी किसी पदार्थ को अग्नि में रखा जाता है उसे जलाकर अथवा बिना जलाये अपने समान सन्तप्त अथवा दिप्तिमान् बना देता है। अङ्ग नयतीति अङ्गनी अग्नि ।
- 'अक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः' - स्थौलाष्टीवि आचार्य के अनुसार यह अक्नोपम (रूखा या शुष्क) बना देने वाला होता है, अतः अग्नि कहलाता है। इस प्रकार नञ् पूर्वक स्नेहार्धक वनुषी धातु से किन' प्रत्यय होकर अहनी - अग्नि बनता है।
- 'त्रिभ्य आख्यातेा जायत इति शाकपूणि इतात् अक्तात् दग्धाद्वा नीतात् - शाकपूणि आचार्य के अनुसार 'इण्' 'अज्जू' अथवा 'दह्' तथा 'णीञ्' इन तीनों धातुओं से अग्नि शब्द बना है, क्योंकि अग्नि गतिशील, पदार्थव्यञ्जक दाहक और गतिप्रदान करने वाला है। इण् धातु से अकार 'अञ्जू' या 'दह्' धातु से दकार और 'णीञ्' से 'नी' लेकर अग्नि शब्द निष्पन्न होता है।
अतः स्पष्ट है, 'अङ्गगयति गमयति' यह अग्नि का निर्वचन नहीं है।
Top वैदिक साहित्य MCQ Objective Questions
वेदस्य मुखं कथ्यते
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - वेद का मुख कहा जाता है -
स्पष्टीकरण - वेद का मुख व्याकरण को कहा गया है। वेदों के लिए सायणाचार्य ने कहा है - अपौरुषेयवाक्यं वेदः। अर्थात् वेद वाक्य अपौरुषेय हैं, जिनकी रचना किसी पुरुष द्वारा नहीं की गयी है।
वेद का मुख व्याकरण है, इसके लिए एक प्रसिद्ध श्लोक है-
छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ पठ्यते।
ज्योतिषामयनं चक्षुर्निरुक्तं श्रोत्रमुच्यते॥
शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य मुखं व्याकरणं स्मृतम्।
तस्मात् साङ्गमधीत्यैव ब्रह्मलोके महीयते॥
अर्थ - छन्द वेद के पैर, कल्प - हाथ, ज्योतिष शास्त्र - चक्षु, निरुक्त - श्रोत्र, शिक्षा - घ्राण (नासिका) और व्याकरण - मुख है। उनके सम्यक् अध्ययन से ही ब्रह्मलोक प्राप्त होता है।
ये छः - छन्द, कल्प, ज्योतिष, निरुक्त, शिक्षा, व्याकरण वेद के अंग हैं। जिसके लिए श्लोक प्रसिद्ध है-
शिक्षा व्याकरणं छन्दो निरुक्तं ज्योतिषं तथा।
कल्पश्चेति षडङ्गानि वेदस्याहुर्मनीषिणः॥
अर्थ - शिक्षा, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष तथा कल्प ये छः विद्वानों द्वारा वेद के अंग कहे गये हैं।
अतः स्पष्ट है कि वेद का मुख व्याकरण है।
याज्ञवल्क्य-जनकयोः संवादोऽस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद - याज्ञवल्क्य और जनक के बीच एक संवाद है -
स्पष्टीकरण - याज्ञवल्क्य और जनक के बीच एक संवाद का सन्दर्भ बृहदारण्यक उपनिषद (४.१) में मिलता है।
Important Points
बृहदारण्यक उपनिषद में उद्धृत यह संवाद प्रारम्भ होता है -
- एक दिन विदेह देश के राजा जनक अपनी सभा में विराजमान थे। उसी समय सभा में ऋषि याज्ञवल्क्य पधारे। सभी सभासद् उठकर ऋषि को नमन किया । राजा ने उनका आतिथ्य किया। आतिथ्य के पश्चात् राजा ने उनके आने का कारण पूछा, "गुरुकुल में सब ठीक तो है। किसी के कारण कोई परेशानी तो नहीं है । ब्रह्मचारियों को भोजन तो मिलता है, गौएँ दूध देती होंगी ।"कुशल-क्षेम के बाद राजा ने ऋषि से कहा- आप हमें ब्रह्मा के बारे में कुछ बताएँ ।
- ऋषि ने उनकी योग्यता जानने के लिए कहा-आपने अब तक ब्रह्मा के बारे में जो कुछ भी सुना है या जाना है, वो सब बताएँ, जिससे मैं आपको उसके आगे बता सकूँ । राजा ने कहा---जित्वा शैलिनि नामक एक बहुत बडे विद्वान्, बहुश्रुत, बहुपठित आए थे । उन्होंने मुझे उपदेश दिया- "वाणी ही श्रेष्ठ है, वाणी ब्रह्मा है, उसी की उपासना करो ।"
- ऋषि ने कहा-"जो व्यक्ति अपने माता-पिता, आचार्य से सुशिक्षित होगा, वही इतनी ऊँची बात कह सकता है । निश्चय ही एक अर्थ में वाणी को ब्रह्मा माना उचित है । यदि मनुष्य को वाणी ही न मिले तो ऐसा मूक प्राणी संसार में क्या कर सकता है । किन्तु क्या उस विद्वान् ने आपको वाणी का स्थान या प्रतिष्ठा बताई थी ?"
- राजा जनक ने कहा- "मुझे उसने यह तो नहीं बताई थी ।"
- तब महर्षि बोले- "तब तो वाणी इस महत् ब्रह्म का एक भाग-मात्र ही है ।"राजा जनक ऋषि से वाणी का स्थान जानना चाहा ।
- ऋषि ने उत्तर दिया- "जहाँ से वाक् की उत्पत्ति होती है, वही वाणी का स्थान है, तथा आकाश ही उसकी प्रतिष्ठा है ।"क्योंकि यदि आकाश न हो तो एक व्यक्ति से उच्चरित वाणी दूसरे को सुनाई नहीं देगी । इसी महत्ता के कारण हमारे ऋषियों ने उसे "शब्दब्रह्म" कहा है । किन्तु वाणी की उपासना प्रज्ञापूर्वक करनी चाहिए, अर्थात् बुद्धि से विचार करके ही वाणी बोलनी चाहिए ।जब ऋषि ने बुद्धि (प्रज्ञा) की बात कही, तब राजा जनक ने उस प्रज्ञा के बारे में जानना चाहा ।
- इस पर महर्षि ने वाणी और प्रज्ञा को अभिन्न बताया- "वाणी से हम ऋग्वेदादि शास्त्रों का अध्ययन , वाचन करते हैं । संसार के सभी लौकिक व्यवहारों का ज्ञान भी वाणी से होता है । इसीलिए इसे बडा (ब्रह्म) कहा गया है । परमात्मा का स्तवन, कीर्त्तन भी तो वाणी से ही किया जाता है। यदि वाणी के इस महत्त्व को जानकर उसका सम्यक् सेवन (उपयोग) किया जाए तो वाणी भी हमें कभी निराश नहीं करती है ।याज्ञवल्क्य से वाणी के इस माहात्म्य को सुनकर राजा जनक बहुत प्रसन्न हुए और गुरुकुल के ब्रह्मचारियों के लिए वृषभ सहित एक हजार दूध देने वाली गौएँ प्रदान कीं ।
इसप्रकार शास्त्रार्थ का संवाद याज्ञ्यवल्क्य और जनक में हुआ।
अतः स्पष्ट है कि , यह संवाद बृहदारण्यक उपनिषद (४.१) उद्धृत है।
ऋग्वेदे 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' देवः कः?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद- ऋग्वेद में 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' देवता कौन है?
"अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः।
देवो देवेभिरा गमत्॥" (ऋग्वेद १।१।५॥)
पदपाठ- अ॒ग्निः । होता॑ । क॒विऽक्र॑तुः । स॒त्यः । चि॒त्रश्र॑वःऽतमः । दे॒वः । दे॒वेभिः॑ । आ । ग॒म॒त् ॥ 1.1.5
अर्थ-
जो (सत्यः) अविनाशी (देवः) आप से आप प्रकाशमान (कविक्रतुः) सर्वज्ञ है, जिसने परमाणु आदि पदार्थ और उनके उत्तम-उत्तम गुण रचके दिखलाये हैं, जो सब विद्यायुक्त वेद का उपदेश करता है, और जिससे परमाणु आदि पदार्थों करके सृष्टि के उत्तम पदार्थों का दर्शन होता है, वही कवि अर्थात् सर्वज्ञ ईश्वर है। तथा भौतिक अग्नि भी स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से कलायुक्त होकर देशदेशान्तर में गमन करानेवाला दिखलाया है। (चित्रश्रवस्तमः) जिसका अति आश्चर्यरूपी श्रवण है, वह परमेश्वर (देवेभिः) विद्वानों के साथ समागम करने से (आगमत्) प्राप्त होता है।
तथा जो (सत्यः) श्रेष्ठ विद्वानों का हित अर्थात् उनके लिये सुखरूप (देवः) उत्तम गुणों का प्रकाश करनेवाला (कविक्रतुः) सब जगत् को जानने और रचनेहारा परमात्मा और जो भौतिक अग्नि सब पृथिवी आदि पदार्थों के साथ व्यापक और शिल्पविद्या का मुख्य हेतु (चित्रश्रवस्तमः) जिसको अद्भुत अर्थात् अति आश्चर्य्यरूप सुनते हैं, वह दिव्य गुणों के साथ (आगमत्) जाना जाता है।
भावार्थ- हे अग्निदेव। आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप् युक्त है। आप देवो के साथ इस यज्ञ मे पधारें ।
अत: यह स्पष्ट होता है की, ऋग्वेद में 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' यह अग्निदेव है।
ईशोपनिषदानुसारेण के जनाः अन्धं तमः प्रविशन्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : ईशोपनिषद के अनुसार कौन से लोक घोर अंधःकर में प्रवेश करते है?
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत प्रश्न 'ईशोपनिषद' के ९ क्रमांक के मंत्र के आधार पर पूँँछा है।
- पूर्ण मंत्र इस प्रकार है -
- 'अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥'
अतः स्पष्ट है, 'ये अविद्यामुपासते' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
Additional Information
- मंत्र का अन्वय :
- ये अविद्याम् उपासते ते अन्धं तमः प्रविशन्ति। ये उ विद्यायां रताः ते तमः भूयः तमः इव प्रविशन्ति॥
- मंत्र का हिंदी भाषांतर :
- जो अविद्या का अनुसरण करते हैं वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। और जो केवल विद्या में ही रत रहते हैं वे मानों उससे भी अधिक घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं।
इन्द्रसूक्तस्य द्रष्टा ऋषिरस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : इन्द्रसूक्त के द्रष्टा ऋषि कौन है?
स्पष्टीकरण :
- ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि के सूक्त आते है। ऋग्वेद का द्वितीय मंडल गृत्समद ऋषि के कुल का मंडल है।
- द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि ने अनेक इंद्र सूक्तोंं की रचना की है।
- गृत्समद ऋषि के मंडल का 'बृहद्वदेम विदथे सुवीराः' यह धृपद है। अतः स्पष्ट है, इन्द्रसूक्त के द्रष्टा ऋषि 'गृत्समद' है।
Additional Information
- ऋग्वेद की रचना दो प्रकार की है। अष्टक रचना और मंडल रचना।
- अष्टक रचना -
- अष्टक रचना के अनुसार ५ ऋचाओ का एक वर्ग, कुछ वर्गोंं का एक अध्याय और ८ अध्यायोंं का एक अष्टक बनता है।
- संपूर्ण ऋग्वेद संहिता ८ अष्टक अर्थात् ६४ अध्यायोंं की बनी है।
- मंडल रचना -
- ऋग्वेद में १० ऋषिकुलमंडल आते है। उनकी रचना इस प्रकार है -
मंडल संख्या | ऋषिकुल |
द्वितीय | गृत्समद |
तृतीय | विश्वामित्र |
चतुर्थ | वामदेव |
पंचम | अत्रि |
षष्ठ | भरद्वाज |
सप्तम | वसिष्ठ |
- मंडल क्रमांक १,८,९. और १० इन की रचना भिन्न तत्वो के आधार पर हुई है।
वैदिकमन्त्राणां सङ्कलनं कुत्र भवति ?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद - वैदिक मंत्र कहाँ संकलित हैं?
स्पष्टीकरण - संहिताओं में वैदिक मन्त्र संकलित है।
Key Points
- भारत निवासियों की साहित्यिक अभिव्यक्ति मौखिक रूप से जिस भाषा में हुई उसे वैदिक संस्कृत कहते हैं। इस भाषा में बहुमूल्य साहित्यिक परम्परा चली जो धार्मिक एवं लौकिक विषयों से भी भरी थी । वैदिक साहित्य तात्कालिक समाज की प्रवृत्तियों को समझने में बहुत उपादेय है। वैदिक साहित्य के धार्मिक विषयों में यज्ञ, देवता, उनके स्वभाव, भेद आदि आए हैं, तो लौकिक विषयों में मानव की इच्छाएँ, संकट और उनके निवारण, समाज का स्वरूप, चिकित्सा, दान, विवाह आदि हैं। इनसे समाज के विविध पक्षों का बोध होता है। वैदिक साहित्य के विकास का समय 6000 ई.पू. से 800 ई.पू. तक माना जाता है। इस कालावधी में चार चरणों में साहित्य का विकास देखा जाता है।
- संहिता
- ब्राह्मण
- आरण्यक
- उपनिषद्
Important Points
- संहिता – संहिताओं में वैदिक मन्त्रों का संग्रह है। इनके चार मुख्य रूप हैं: ऋग्वेदसंहिता, यजुर्वेदसंहिता, सामवेदसंहिता तथा अथर्ववेदसंहिता । इन चारो वेदो में वैदिक मन्त्र संकलित है।
- इनका विभाजन वैदिक यज्ञों में काम करने वाले चार ऋत्विजों (यज्ञ कराने वालों) के कार्यों को ध्यान में रखकर हुआ था।
- यज्ञों में ये चार ऋत्विज होते थे— होता, अध्वर्यु, उद्गाता तथा ब्रह्मा। होता देवताओं को यज्ञ में बुलाता है और ऋचाओं का पाठ करते हुए यज्ञ-देवों की स्तुति करता है।
- होता के प्रयोग के लिए उपयोगी मन्त्रों का संग्रह ऋग्वेदसंहिता में है। अध्वर्यु का काम यज्ञ का विधिपूर्वक सम्पादन है। इसके लिए आवश्यक मन्त्र यजुर्वेदसंहिता में संकलित हैं।
- उद्गाता का काम यज्ञ में ऋचाओं का सस्वर गान करना है। वह मधुर स्वर में देवताओं को प्रसन्न करता है। उसके उपयोग के लिए ऋग्वेदसंहिता के मंत्र सामवेदसंहिता में संकलित किए गए हैं।
- ब्रह्मा नामक ऋत्विज् यज्ञ का पूरा निरीक्षण करता है, जिससे कोई त्रुटि न हो। यद्यपि वह सभी वेदों का ज्ञाता होता है, किन्तु उसका अपना विशिष्ट वेद अथर्ववेद-संहिता है।
- इन संहिताओं का अध्ययन विभिन्न परिवारों में पृथक्-पृथक् रूप से होता था, परिणामस्वरूप कालान्तर में इनकी अनेक शाखाएँ हो गईं। अतः स्पष्ट है कि , वैदिक मंत्र संहिता में संकलित है।
अग्निसूक्तस्य ऋषिः
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFअनुवाद - अग्निसूक्त का ऋषि -
स्पष्टीकरण -
- ऋग्वेद चतुर्वेदों में अत्यंत प्राचीनतम् ग्रन्थ है।
- ये चारों वेद अपौरुषेय हैं ।
- ऋग्वद का प्रथम सूक्त अग्नि सूक्त है।
- जिसके नौ मन्त्र हैं।
- इसके देवता अग्नि तथा ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र है।
- ऋग्वेद में अग्नि को यजमान का होता कहा गया है जो हवि को देवताओं तक पंहुचाता है।
अतः अग्निसूक्त के ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र है।
सहस्रशीर्षा ____ सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
इत्यस्याः ऋचायाः रिक्तस्थानपूरणं कुरुत-
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFसहस्रशीर्षा ____ सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
इस ऋचा में रिक्तस्थान की पूर्ती कीजिए।
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत ऋचा ऋग्वेद के दशम मंडल के ९० वे सूक्त की प्रथम ऋचा है। संपूर्ण ऋचा -
- सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
- अर्थ - पुर में व्यापक शक्ति वाले राजा के तुल्य समस्त ब्रह्माण्ड में व्यापक परम पुरुप परमात्मा हजारों शिरों वाला है। वह सब जगत् के उत्पादक, सर्वाश्रय प्रकृति को सब ओर से, सब प्रकार से चरण कर, व्याप्त कर दश अंगुल अतिक्रमण करके विराजता है।
अतः स्पष्ट है, 'पुरुषः' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
अतिथिपूजनं कस्मिन् यज्ञे क्रियते?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : अतिथिपूजन किस यज्ञ में किया जाता है?
स्पष्टीकरण :
- अतिथि पूजन करना गृहस्थाश्रम का कर्तव्य माना गया है।
- पंचयज्ञ करना यह गृहस्थ का धर्म है। 'अतिथि पूजन' को ही नृयज्ञ यह संज्ञा है, जो पंचयज्ञोंं में एक है।
अतः स्पष्ट है, 'नृयज्ञे' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
Important Points
- पंचयज्ञ इस प्रकार के है -
- अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणम्।होमोदेवौ बलिर्भौतो नृयज्ञो अतिथि पूजनम्।।
- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ और अतिथीयज्ञ इनकी गणना पंचयज्ञोंं में होती है।
- अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणम्।होमोदेवौ बलिर्भौतो नृयज्ञो अतिथि पूजनम्।।
सांख्य दर्शनस्य प्रणेता कः?
Answer (Detailed Solution Below)
वैदिक साहित्य Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न अनुवाद - सांख्य दर्शन के प्रणेता कौन है?
स्पष्टीकरण - सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल है।
- भारतीय दर्शन के छः प्रकारों में से सांख्य (साङ्ख्य) भी एक है जो प्राचीनकाल में अत्यन्त लोकप्रिय तथा प्रथित हुआ था।
- यह अद्वैत वेदान्त से सर्वथा विपरीत मान्यताएँ रखने वाला दर्शन है।
- इसकी स्थापना करने वाले मूल व्यक्ति कपिल कहे जाते है।
- 'सांख्य' का शाब्दिक अर्थ है - 'संख्या सम्बंधी' या विश्लेषण।
- इसकी सबसे प्रमुख धारणा सृष्टि के प्रकृति-पुरुष से बनी होने की है, यहाँ प्रकृति (यानि पंचमहाभूतों से बनी) जड़ है और पुरुष (यानि जीवात्मा) चेतन।
अत: स्पष्ट है कि सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल है।
Key Points
अन्य विकल्प -
1.महर्षि कणादः -
- भारतीय वैदिक दर्शन के छः अंग हैं- न्याय, मीमांसा, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदान्त।
- उनमें से वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद थे।
- वैशेषिक सूत्र ही वैशेषिक दर्शन का मूल ग्रन्थ है।
- वैशेषिक दर्शन का आधार परमाणुवाद है।
2.महर्षि गौतमः -
- गौतम जिन्हें 'अक्षपाद गौतम' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है, 'न्याय दर्शन' के प्रथम प्रवक्ता माने जाते है।
- न्याय दर्शन का सूत्रबद्ध, व्यवस्थित रूप अक्षपाद के 'न्यायसूत्र' में ही पहली बार मिलता है।
3.महर्षि पतञ्जलिः -
- योग दर्शन छः भारतीय आस्तिक दर्शनों में से एक शास्त्र है।
- योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है।
- पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों को चंचल होने से रोकना (चित्तवृत्तिनिरोधः) ही योग है।
- अर्थात् मन को इधर-उधर भटकने न देना, केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है