संस्कृत MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संस्कृत - Download Free PDF
Last updated on Jun 9, 2025
Latest संस्कृत MCQ Objective Questions
संस्कृत Question 1:
कथयिष्यति इत्यस्य लुट् लकारे रुपं किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 1 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - कथयिष्यति इसका लुट् लकार के रूप क्या है?
स्पष्टीकरण -
'कथयिष्यति' इत्यस्य लुट् लकारे रुपं भवति कथयिता।
'कथयिष्यति' इसका लुट् लकार के रूप है कथयिता।
Hint'कथ्' धातु परस्मैपदी 'लुट् लकार' का सम्पूर्ण रूप है -
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमपुरुष | कथयिता | कथयितारौ | कथयितारः |
मध्यमपुरुष | कथयितासि | कथयितास्थः | कथयितास्थ |
उत्तम पुरुष | कथयितास्मि | कथयितास्वः | कथयितास्मः |
संस्कृत Question 2:
एधाम्बभूव इति कस्मिन् पुरुषे अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 2 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : एधाम्बभूव यह रूप किस पुरुष में होता है?
स्पष्टीकरण :
- परोक्षेलिट् इस सूत्र से 'परोक्ष भूत काल' में लिट् लकार का प्रयोग होता है। जो कार्य आँखों के सामने पारित होता है, उसे परोक्ष भूतकाल कहते हैं।
- लिट् लकार के दो प्रकार होतें है -
- आमन्त/आमयुक्त
- अभ्यस्त
- आमन्त लिट् लकार में यह प्रक्रिया होती है -
- धातु + आम् + अस्/कृ/भू धातु + लिट् लकार प्रत्यय
एध् धातु के लिट् लकार में रूप इस प्रकार होंगे -
|
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरुष |
एधाञ्चक्रे / एधाम्बभूव / एधामास |
एधाञ्चक्राते / एधाम्बभूवतुः / एधामासतुः |
एधाञ्चक्रिरे / एधाम्बभूवुः / एधामासुः |
मध्यमपुरुष |
एधाञ्चकृषे / एधाम्बभूविथ / एधामासिथ |
एधाञ्चक्राथे / एधाम्बभूवथुः / एधामासथुः |
एधाञ्चकृढ्वे / एधाम्बभूव / एधामास |
उत्तमपुरुष |
एधाञ्चक्रे / एधाम्बभूव / एधामास |
एधाञ्चकृवहे / एधाम्बभूविव / एधामासिव |
एधाञ्चकृमहे / एधाम्बभूविम / एधामासिम |
अतः स्पष्ट है, 'प्रथमउत्तमे' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
संस्कृत Question 3:
'लृट्' इति लकारः कस्मिन् काले प्रयुज्यते ?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 3 Detailed Solution
प्रश्नार्थ - 'लृट्' यह लकार किस लकार में योजित है?
लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है।
'गम्-गच्छ' - लृट् लकार भविष्यकाल के रूप
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम पुरुष |
गमिष्यति (जाएगा) |
गमिष्यतः (वह दो जाएंगे) |
गमिष्यन्ति (वह सब जाएंगे) |
मध्यम पुरुष |
गमिष्यसि (जाओगे) |
गमिष्यथः (तुम दो जाओंगे) |
गमिष्यथ (तुम सब जाओंगे) |
उत्तम पुरुष |
गमिष्यामि (मैं जाऊंगा) |
गमिष्यावः (हम दो जाएंगे) |
गमिष्यामः (हम सब जाएंगे) |
Additional Information
इन धातुओं से दस लकारों में रूप बनते है-
लकारों के नाम तथा अर्थ -
i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति।
ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है -
- आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ।
- प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ।
- अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि।
- आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव।
iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्।
iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्' विधिलिङ् लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है -
- विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्।
- छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः।
- निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्।
- आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे।
- प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्।
- इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत।
v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढे़गा - सः पठिष्यति।
vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढे़गा - सः पठिता।
vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्।
viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्।
ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्।
x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ।
व्याकरण के दृष्टि से धातु शब्द का अर्थ है - "शब्द योनि"
संस्कृत Question 4:
नर्द धातोः लोट्-उत्तमपुरुष-बहुचनरुपं किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 4 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - नर्द् धातु लोट् लकर उत्तमपुरुष-बहुचन का रुप क्या होगा?
स्पष्टीकरण -
'नर्द्' धातोः लोट्-उत्तमपुरुष-बहुचनरुपं - नर्दाम।
'नर्द्' धातु लोट् लकर उत्तमपुरुष-बहुचन का रुप - नर्दाम।
Hint'नर्द' धातु के लोट् लकार का रुप-
संस्कृत Question 5:
स्पर्ध-धातोः मध्यमपुरुषैकवचनं किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 5 Detailed Solution
प्रश्नार्थ - ‘स्पर्ध’ धातु का मध्यम-पुरुष, एकवचन में क्या रूप है?
उत्तर - स्पर्धसे ।
स्पष्टीकरण - ‘स्पर्ध संघर्षे’ धातुः अयम् आत्मनेपदी। यस्य मध्यमपुरुषस्य एकवचने रूपं ‘स्पर्धसे’ इति भवति।
Hint स्पर्ध धातोः रूपाणि –
Important Points
धातु रूपेषु सर्वदा तिङ् प्रत्ययों की संख्या 18 है, उनमें से 9 प्रत्यय परस्मैपद तथा 9 प्रत्यय आत्मनेपद है।
Top संस्कृत MCQ Objective Questions
निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ के नाम से ख्यात है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ को तोड़कर देखें तो ‘चतुर्विंशति + साहस्री + संहिता’ प्राप्त होता है। जिनके अर्थ इस प्रकार है-
- चतुर्विंशति- चौबीस
- साहस्री- हजार
- संहिता- एक साथ हो।
अर्थात् चौबीस हजार श्लोक जहाँ हो, रामायण में चौबीस हजार श्लोक है, अतःउसे ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ कहेंगे।
Key Points
- विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।
- रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-
- बालकाण्ड- 77 सर्ग
- अयोद्ध्याकाण्ड- 129 सर्ग
- अरण्यकाण्ड- 75 सर्ग
- किष्किन्धाकाण्ड- 67 सर्ग
- सुन्दरकाण्ड- 68 सर्ग
- लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)- 128 सर्ग
- उत्तरकाण्ड- 111 सर्ग
Additional Information
- महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिये इसे ‘शत्साहस्रीसंहिता’ भी कहते हैं।
माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण:- पाणिनी ने अपने अष्टाध्यायी में १४ माहेश्वर सूत्र बताये है। वह इसप्रकार हैं-
१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।
इन माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र के साथ 'चतुर्दश सूत्र' से भी जाने जाते है।
अतिरिक्त जानकारी
उत्पत्ति:- एक आख्यायिका के अनुसार पाणिनि को यह सूत्र भगवान शङ्कर से प्राप्त हुए।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
अर्थ:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"
इस तरह से इन माहेश्वर सूत्रोंकी उत्त्पत्ति है। इन्हे शिवसूत्र भी कहते हैं। इन्ही १४ शिवसूत्रोंको पाणिनि ने भगवान शङ्कर से प्राप्त किया और उनसे अष्टाध्यायी के प्रत्याहार बनाये। इसलिए इन सूत्रों को प्रत्याहार विधायक सूत्र भी कहते हैं।
"काव्यादर्श" के रचयिता हैँ
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFकाव्यादर्श
- काव्यादर्श एक रीतिसम्प्रदाय का साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है।
- काव्यादर्श मे तीन परिच्छेद मिलते है।
- प्रथम परिच्छेद - काव्य परिभाषा, काव्यभेद, महाकाव्यादि के लक्षण आदि।
- द्वितीय परिच्छेद - 35 अर्थालङ्कारो के भेद - प्रभेद के साथ लक्षण उदाहरनादि।
- तृतीय परिच्छेद - यमक का विवेचन है।साथ ही, चित्रकाव्य, स्वरनियम, स्थाननियम, वर्णनियम तथा प्रहेलिका इत्यादि के लक्षण एवं उदाहरण भी दे दिए गए हैं।
- ग्रंथ के अन्त में काव्यदोषों का परिचय है।
दण्डी
- दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
- जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे।
- दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. ‘काव्यादर्श’, 2. ‘दशकुमार चरित’ और 3. ‘अवंतिसुन्दरी कथा’
'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFधात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्न शब्दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्दों को उपसर्ग कहते है -
"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"
उदाहरण
उपसर्ग | निर्मित शब्द |
वि | विराम, विश्राम |
परि | परिहार, परिपूर्ण |
प्र | प्रगति, प्रतिष्ठा |
उत् |
उत्थान, उद्घाटन |
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-
उपसर्ग |
अर्थ |
उदाहरण |
प्र |
प्रकृष्ट |
प्रगति, प्रतिष्ठा |
परा |
निषेध, विपरित |
पराजितं पराभवति |
अप |
न्यूनता या हीनता |
अपकरोति, अपहरति |
सम् |
अच्छा |
संगच्छति, संस्करोति |
अपि | ढ़कना | अप्यस्ति |
अनु |
अनुकरण |
अनुगमनं अनुकरोति |
अव |
निचे |
अवगच्छति, अवजानन्ति |
निर् |
निषेध |
निर्गच्छति, निराकरोति |
निस् |
निषेध |
निष्कारणं, निस्सरति |
दुस् |
कठिन, दुष्कर |
दुष्टः, दुष्प्रयोजन |
दुर् |
कठिन, दुष्कर |
दुर्गति, दुर्बोध्य |
वि |
विशिष्ट |
विजयते, विगत |
आङ् |
सिमा |
आजिवनम्, आकण्ठम् |
नि |
निचे |
निगदति, निपतति |
अधि |
प्रधानता या आधार |
अधिराजते, अधिहरि |
अति |
अतिशय |
अत्यन्त, अत्याचारः |
सु |
अच्छा |
स्वागतं, सुशोभते |
उत् |
ऊँचा |
उत्कर्षं, उत्पतति |
अभि |
समीप |
अभ्यागतः, अभ्यासः |
प्रति |
विपरित |
प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत् |
परि |
चारो ओर |
पर्यावरणं, परिवर्तनम् |
उप |
समीप |
उपकार, उपहार |
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल कितने अध्याय हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध के पूर्व कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। जो कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
Additional Information
विशेष:- महाभारत में अठारह संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण है-
- महाभारत के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- युद्ध के दिनों की सन्ख्या- 18
- श्रीमद्भगवद्गीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- उपगीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
अतः स्पष्ट है कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
मातृ शब्द का पंचमी विभक्ति का एकवचन रूप है-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDF'मातृ' यह प्रातिपदिक 'ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द है। इसके विभिन्न विभक्ति-वचन में रूप निम्नलिखित हैं-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
माता |
मातरौ |
मातरः |
द्वितीया |
मातरम् |
मातरौ |
मातृ |
तृतीया |
मात्रा |
मातृभ्याम् |
मातृभिः |
चतुर्थी |
मात्रे |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
पन्चमी |
मातुः |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
षष्ठी |
मातुः |
मात्रोः |
मातृणाम् |
सप्तमी |
मातरि |
मात्रोः |
मातृषु |
सम्बोधन |
हे माता! |
हे मातरौ! |
हे मातरः! |
उपर्युक्त सारणी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि 'मातृ' शब्द की पञ्चमी विभक्ति एकवचन में 'मातुः' रूप होता है।
Additional Information
मातृ की तरह दुहितृ, स्वसृ, ननादृ यह कुछ अन्य 'ऋकारान्त' स्त्रीलिंग पद है।
'नदी' शब्द का सप्तमी, एकवचन रूप है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDF‘नदी’ का अर्थ ‘नदी’ या 'सरिता' होता है। ‘नद्याम्’ शब्द रूप – ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन’ है।
‘नदी’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित है:-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
नदी |
नद्यौ |
नद्यः |
द्वितीया |
नदीम् |
नद्यौ |
नदीः |
तृतीया |
नद्या |
नदीभ्याम् |
नदीभिः |
चर्तुथी |
नद्यै |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
पन्चमी |
नद्याः |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
षष्ठी |
नद्याः |
नद्योः |
नदीनाम् |
सप्तमी |
नद्याम् |
नद्योः |
नदीषु |
सम्बोधन |
हे नदि! |
हे नद्यौ! |
हे नद्यः! |
'दास्यति' क्रियापद में लकार है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण - 'दास्यति' का अर्थ होता है, 'देगा/देगी' जो भविष्यकाल है।
‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यामि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' प्रथम पुरुष एकवचन है।
Hint
लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है।
जैसे - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
लृट् लकार क सूत्र = धातु + स्य + लट्लकार प्रत्यय
उदा.
- पठिष्यति = पठ् + स्य + ति
- लेखिष्यति = लिख् + स्य + ति
- भविष्यति = भू-भव् + स्य + ति
- दास्यत्ति = दा + स्य + ति
Additional Information
लकार - संस्कृत में दस लकारों का वर्णन मिलता है -
लकारों के नाम तथा अर्थ -
i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति।
ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है -
- आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ।
- प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ।
- अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि।
- आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव।
iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्।
iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्' विधिलिङ्ग लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है -
- विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्।
- छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः।
- निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्।
- आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे।
- प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्।
- इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत।
v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिता।
vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्।
viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्।
ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्।
x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ।
Comprehension:
निर्देशः अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा तदाधारितप्रश्नानां विकल्पात्मकोत्तरेभ्यः उचिततमम् उत्तरं चित्वा लिखत।
जीवनस्य मूल्यम् अर्थात् ते मानवीयगुणाः ये मानवजीवनम् उत्कर्षं प्राप्यन्ति। तेषु प्रमुखाः दया-सत्य-अहिंसा-अस्तेय-अक्रोधादयः सन्ति। मानवजीवनस्य उत्थानाय एतेषां महती आवश्यकता भवति। मनुष्यः वास्तवः मनुष्यः तदैव भवति, यदा सः एतैः गुणैः सुशोभितः भवति। सर्वाङ्गीणविकासाय पुस्तकीय ज्ञानेन समं नैतिकमूल्यान्यपि छात्रैः ग्रहीतव्यानि। बाल्यावस्थायां मूल्यानां शिक्षा प्रदीयते चेत् व्यक्तित्वस्य सर्वाङ्गीण-विकासः भवति। मानवः स्वकीयं पुरुषार्थं करोति, जीवनलक्ष्यं च प्राप्नोति।
भारतीयसंस्कृतौ आदिकालतः एव जीवनमूल्यानां प्राधान्यम् अस्ति। प्राचीनकालादेव भारतीयसंस्कृतेः मूल्यपरकगुणानां स्तुतिः भवति। एतैः गुणैरेव भारतं विश्वगुरुपदं प्राप्नोत्। सम्प्रत्यपि पुनः तत्पदं प्राप्तुं छात्रेषु बाल्यादेव एते संस्काराः स्थापनीयाः। आधुनिकजीवने मानवाः चिन्तावसादतनावैः सम्पीडिताः सन्ति। कदाचित् ते दुःखकातरो भूत्वा आत्महननमपि कुर्वन्ति। एतान् विकारान् निराकर्तुं जीवनमूल्यानां महती भूमिका वर्तते। अतः सम्प्रतिकाले अध्ययनेन सह जीवनमूल्यशिक्षायाः आवश्यकता वर्तते।
जीवनमूल्यानि सन्ति
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न अनुवाद - जीवन का मूल्य है -
स्पष्टीकरण - गद्यांश में उल्लिखित है "जीवनस्य मूल्यम् अर्थात् ते मानवीयगुणाः ये मानवजीवनम् उत्कर्ष प्राप्यन्ति।" जिसका अर्थ है "जीवनमूल्य अर्थात् वो मानवीयगुण (होते है) जिससे मानवजीवन को उत्कर्ष प्राप्त करते है।"
अर्थात् मानवीयगुण ही उत्कर्षकारण है जो जीवनमूल्य होते है।
अतः "उत्कर्षकारणानि" विकल्प सही है।
'दा' धातु के लृट लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में रूप बनता है-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यसि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' मध्यम पुरुष एकवचन है।