लौकिक साहित्य MCQ Quiz - Objective Question with Answer for लौकिक साहित्य - Download Free PDF
Last updated on Jun 5, 2025
Latest लौकिक साहित्य MCQ Objective Questions
लौकिक साहित्य Question 1:
अश्वघोष की रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 1 Detailed Solution
स्पष्टीकरण-
अश्वघोष
- अश्वघोष, बौद्ध महाकवि तथा दार्शनिक थे।
- बुद्धचरितम् इनकी प्रसिद्ध रचना है।
- इनके नाम से प्रख्यात अनेक ग्रंथ हैं, परंतु प्रामाणिक रूप से अश्वघोष की साहित्यिक कृतियाँ केवल चार हैं - (1 ) बुद्धचरितम् (2 ) सौन्दरानंदकाव्यम् (3 ) गंडीस्तोत्रगाथा (4 ) शारिपुत्रप्रकरणम्
- बुद्धचरितम् = चीनी तथा तिब्बती अनुवादों बुद्धचरित पूरे 28 सर्गों में उपलब्ध है, परंतु मूल संस्कृत में केवल 14 सर्गों में ही मिलता है।
- सौन्दरानंदकाव्यम् = 'सौन्दरनन्द' अश्वघोषप्रणीत द्वितीय महाकाव्य है। इसमें भगवान बुद्ध के अनुज नन्द का चरित वर्णित है। सौंदरानंद (18 सर्ग) सिद्धार्थ के भ्राता नंद को उद्दाम काम से हटाकर संघ में दीक्षित होने का भव्य वर्णन करता है।
- गंडीस्तोत्रगाथा = गंडोस्तोत्रगाथा गीतकाव्य की सुषमा से मंडित है।
- शारिपुत्रप्रकरणम् = इसमे 8 सर्गों में लिखित बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र के बौद्ध् धर्म लेने का वर्णन मिलता है। यह भारतीय साहित्य का प्रथम अधूरा नाटक है।
लौकिक साहित्य Question 2:
भवभूति का मूल नाम क्या था?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 2 Detailed Solution
भवभूति का मूल नाम श्रीकंठ था -
प्रसिद्धी | मूलनाम |
श्रीपति | विष्णु |
दामोदर |
गणेशजी |
भवभूति | श्रीकंठ |
नीलकंठ |
शिवजी |
Additional Information
- नीलकंठ - भवभुतिके पिता का भी नाम था।
- दामोदर - भारवी का मूलनाम था।
लौकिक साहित्य Question 3:
'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।' इत्यादिकं पद्यं कुतः गृहीतम्?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 3 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।' इत्यादि पद्य कहाँ से लिया गया है?
स्पष्टीकरण -
महाकवि कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में राजा दुष्यन्त प्रथम अङ्क में आश्रम में प्रविष्ट होने पर होने वाले शुभ शकुन पर चिन्तन करते हुए कहते हैं -
'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।'
अर्थ - होनी के लिए सब जगह द्वार खुले रहते हैं।
अतः स्पष्ट है कि 'भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र।' यह पद्य महाकवि कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' इस नाटक से लिया गया है।
लौकिक साहित्य Question 4:
'प्रत्यक्षरश्लेषमयी रचना' का अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 4 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - प्रति अक्षर श्लेषमयी रचना क्या है।
स्पष्टीकरण-
सुबन्धु अपनी रचना 'वासवदत्ता' को कोई साहित्यिक अलंकारोंं से विभुषित किया है जिनमें से श्लेष प्रधान हैं।
सुबन्धु का स्वयं कहना हैं कि उसका काव्य -
"प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रबन्धविन्यासवैदग्ध्यानिधिः।"
अर्थात्, प्रत्यक्ष अक्षर में श्लेष होने के कारण 'वासवदत्ता' वैदग्ध प्रतिभा की निधि है।
वस्तुतः श्लेष को प्रस्तुत करने का उद्देश्य वक्रोक्ति की शोभा बढ़ाना है।
उदाहरणतः एक युवती की सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सुबन्धु कहते है -
"वानरसेनामिव सुग्रीवांगदोपशोभितम्"
अर्थात् वानर के सेना के समान सुग्रीव (सुन्दरी पक्ष सुन्दर ग्रीव) और अंगद (युवती पक्ष में अंगद नामक आभूषण विशेष) से सुशोभित थी।
Additional Information
रचना | रचनाकार | श्रेणी |
कादम्बरी | बाणभट्ट | गद्यकाव्य |
दशकुमारचरितम् | दण्डी | गद्यकाव्य |
स्वप्नवासवादत्तम् | भास | नाटक |
लौकिक साहित्य Question 5:
‘अन्तर्हिते शशिनि सैव कुमुद्वती मे’ इतीयं पंक्तिः कालिदासस्य कस्मिन् ग्रन्थे विद्यते?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - ‘अन्तर्हिते शशिनि सैव कुमुद्वती मे’ यह पंक्ति कालिदास के किस ग्रन्थ में है?
स्पष्टीकरण - अन्तर्हिते शशिनि सैव कुमुद्वती मे - यह पंक्ति कालिदास द्वारा विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक के चतुर्थ अंक में उल्लिखित है।
अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में सात अंक है, जिसमें दुष्यन्त और शकुन्तला के परिणय की कथा है।
उपरोक्त पंक्ति एक श्लोक में उल्लिखित है। श्लोक इस प्रकार है -
श्लोक-
अन्तर्हिते शशिनि सैव कुमुद्वती मे दृष्टिं न नन्दयति संस्मरणयीशोभा।
इष्टप्रवासजनितान्यबलाजनस्य दुःखानि नूनमतिमात्रसुदुःसहानि।।
अर्थ - चन्द्रमा के के अस्त होने पर वही कुमुदिनी स्मरणीय शोभायुक्त होने से मेरी दृष्टि को अब आह्लादित नहीं कर रही है, क्योंकि स्त्रियों को अपने इष्ट व्यक्ति के प्रवास से उत्पन्न दुख अत्यंत कष्टकारी होता है।
इस तरह श्लोक से स्पष्ट है कि उपरोक्त पंक्ति अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक में उल्लिखित है।
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निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ के नाम से ख्यात है?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ को तोड़कर देखें तो ‘चतुर्विंशति + साहस्री + संहिता’ प्राप्त होता है। जिनके अर्थ इस प्रकार है-
- चतुर्विंशति- चौबीस
- साहस्री- हजार
- संहिता- एक साथ हो।
अर्थात् चौबीस हजार श्लोक जहाँ हो, रामायण में चौबीस हजार श्लोक है, अतःउसे ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ कहेंगे।
Key Points
- विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।
- रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-
- बालकाण्ड- 77 सर्ग
- अयोद्ध्याकाण्ड- 129 सर्ग
- अरण्यकाण्ड- 75 सर्ग
- किष्किन्धाकाण्ड- 67 सर्ग
- सुन्दरकाण्ड- 68 सर्ग
- लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)- 128 सर्ग
- उत्तरकाण्ड- 111 सर्ग
Additional Information
- महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिये इसे ‘शत्साहस्रीसंहिता’ भी कहते हैं।
"काव्यादर्श" के रचयिता हैँ
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFकाव्यादर्श
- काव्यादर्श एक रीतिसम्प्रदाय का साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है।
- काव्यादर्श मे तीन परिच्छेद मिलते है।
- प्रथम परिच्छेद - काव्य परिभाषा, काव्यभेद, महाकाव्यादि के लक्षण आदि।
- द्वितीय परिच्छेद - 35 अर्थालङ्कारो के भेद - प्रभेद के साथ लक्षण उदाहरनादि।
- तृतीय परिच्छेद - यमक का विवेचन है।साथ ही, चित्रकाव्य, स्वरनियम, स्थाननियम, वर्णनियम तथा प्रहेलिका इत्यादि के लक्षण एवं उदाहरण भी दे दिए गए हैं।
- ग्रंथ के अन्त में काव्यदोषों का परिचय है।
दण्डी
- दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
- जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे।
- दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. ‘काव्यादर्श’, 2. ‘दशकुमार चरित’ और 3. ‘अवंतिसुन्दरी कथा’
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल कितने अध्याय हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध के पूर्व कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। जो कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
Additional Information
विशेष:- महाभारत में अठारह संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण है-
- महाभारत के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- युद्ध के दिनों की सन्ख्या- 18
- श्रीमद्भगवद्गीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- उपगीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
अतः स्पष्ट है कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
निम्नलिखित में से कौन सी कृति महाकवि कालिदास विरचित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास विरचित कृतियों की तालिका:–
रचना |
विधा |
रघुवंशम्, कुमारसंभवम् |
महाकाव्य |
मेघदूतम् |
खण्डकाव्य |
ऋतुसंहारम् |
मुक्तककाव्य |
मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् |
नाटक |
अतः स्पष्ट है, कि `उरुभङ्गम्' कालिदास विरचित नाटक नहीं है।
निम्न में से कौन-सा ग्रन्थ ‘महाभारत’ पर आश्रित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF‘महाभारत’ के कथानक के अनुसार ‘स्वप्नवासदत्तम्’ का कथानक किसी भी प्रकार महाभारत से सम्बन्धित नहीं है।
उपर्युक्त ग्रन्थों के कथानक इस प्रकार से है-
वेणीसंहारम् |
द्रोपदी के वेणी संहार से सम्बन्धित कथानक का वर्णन है। |
नैषधीयचरितम् |
‘वनपर्व’ में वर्णित ‘नल-दमयन्ती’ की कथानक का वर्णन है। |
स्वप्नवासदत्तम् |
उदयन और वासवदत्ता की प्रणयकथा है। |
शिशुपालवधम् |
इन्द्रप्रस्थ में वर्णित शिशुपाल के वध का कथानक वर्णित है। |
'स्वप्नवासवदत्तम्' का नायक है
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
स्वप्नवासवदत्तम्
- महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है
- यह छः अंकों का नाटक है।
- भास के नाटकों में यह सबसे उत्कृष्ट है।
- क्षेमेन्द्र के बृहत्कथामंजरी तथा सोमदेव के कथासरित्सागर पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवाङ्मय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है।
- इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है।
- नाटक का प्रधान रस शृंगार है तथा हास्य की भी सुन्दर उद्भावना हुई है।
- स्वप्नवासवदत्तम् के नायक पुरुवंशीय राजा उदयन हैं।
- पुरुवंशीय उदयन वत्स राज्य के राजा थे।
- पुरुवंशीय उदयन धीरललित नायक की श्रेणी में आते है।
- राजा उदयन वीर, कला प्रेमी, व्यवहार कुशल है।
इनमें से कौन-सी कालिदास की दूसरी रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर रचनाएं की, जिसमें भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं संस्कृत साहित्य में ही नहीं अपितु समग्र साहित्यिक संसार में उन्हें कविकुलश्रेष्ठ तथा कविशिरोमणि माना जाता है।
कालिदास की रचनायें –
- नाटक – अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्।
- महाकाव्य - रघुवंशम् और कुमारसंभवम्।
- खण्डकाव्य - मेघदूतम् और ऋतुसंहार।
Important Points
नाटक –
- मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र और मालविका की प्रणय कथा वर्णित है।
- अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है, जिसमें हास्तिनपुर के राजा दुष्यन्त और कण्व की पालिता पुत्री शकुन्तला की प्रणय कथा का वर्णन हुआ है।
- कालिदास विरचित नाटक विक्रमोर्वशीयम् अनेक रहस्यों से युक्त है, जिसमें राजा पुरूरवा तथा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा हैं।
महाकाव्य -
इन नाटकों के अलावा कालिदास ने दो महाकाव्यों और दो गीतिकाव्यों की भी रचना की। रघुवंशम् और कुमारसंभवम् उनके महाकाव्यों के नाम है।
- रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं।
- कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
खण्डकाव्य -
- मेघदूतम् में एक विरह-पीड़ित निर्वासित यक्ष के द्वारा अपनी यक्षिणी के लिए संदेश प्रेषित करने के लिए दूत के रूप में मेघ को भेजा जाता है।
- ऋतुसंहारम् में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अतः स्पष्ट है कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है।
'पदलालित्य' के लिए प्रसिद्ध है
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त कवि एवं उनकी प्रसिद्धियां -
कवि |
प्रसिद्धि |
दण्डी |
पदलालित्य |
भारवि |
अर्थगौरव |
हर्षः |
कविपण्डित |
कालिदासः |
उपमा |
अतः, स्पष्ट है कि 'पदलालित्य' के लिए `महाकवि दण्डी' प्रसिद्ध है।
................. भवभूति की रचना का नाम है।
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFभवभूति की रचना का नाम उत्तररामचरितम् है -
रचनाए |
रचनाकार |
उत्तररामचरितम् |
भवभूति |
उत्तररामायण |
तुलसीदास |
रामचरित |
तुलसीदास |
हर्षचरितदर्शन |
कालीदास |
Additional Information
उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
''अविमारकम्'' नाटक के प्रणेता है-
Answer (Detailed Solution Below)
लौकिक साहित्य Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
- संस्कृतकाव्य में सर्वश्रेष्ठ नाट्यकारों की शृंखला में भास भी अग्रगण्य कवि है। इनके द्वारा रचित तेरह नाटक हैं।
- इनके इन तेरह नाटकों में अविमारक नामक भी एक रूपक है।
- इस रूपक में छः अंक है।
- इस नाटक में राजकुमार अविमारक और राजकुमारी कुरंगी की प्रणयकथा है।
- अतः उपर्युक्त प्रश्न के अनुसार अविमारक के प्रणेता महाकवि भास है।
Important Points
भास के तेरह नाटक -
- स्वप्नवासवदत्ता
- प्रतिज्ञायौगंधरायण
- दरिद्र चारुदत्त
- अविमारकनाटक
- प्रतिमानाटक
- अभिषेकनाटक
- बालचरित
- पञ्चरात्र
- मध्यमव्यायोग
- दूतवाक्य
- दूतघटोत्कच
- कर्णभार
- उरुभङ्ग
- इन तेरह नाटकों में रामायण आधारित केवल दो नाटक हैं- प्रतिमानाटक और अभिषेकनाटक
- महाभारत आधारित केवल छः नाटक हैं - पञ्चरात्र, मध्यमव्यायोग, दूतवाक्य, दूतघटोत्कच, कर्णभार और उरुभङ्ग।