व्याकरण MCQ Quiz - Objective Question with Answer for व्याकरण - Download Free PDF

Last updated on Jun 9, 2025

Latest व्याकरण MCQ Objective Questions

व्याकरण Question 1:

कथयिष्यति इत्यस्य लुट् लकारे रुपं किम्?

  1. कथयिष्यति।
  2. अकारयिता।
  3. कारयिता।
  4. कथयिता।
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : कथयिता।

व्याकरण Question 1 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - कथयिष्यति इसका लुट् लकार के रूप क्या है?

स्पष्टीकरण - 

'कथयिष्यति' इत्यस्य लुट् लकारे रुपं भवति कथयिता

'कथयिष्यति' इसका लुट् लकार के रूप है कथयिता

Hint'कथ्' धातु परस्मैपदी 'लुट् लकार' का सम्पूर्ण रूप है -

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमपुरुष कथयिता   कथयितारौ  कथयितारः
मध्यमपुरुष कथयितासि   कथयितास्थः  कथयितास्थ
उत्तम पुरुष कथयितास्मि  कथयितास्वः  कथयितास्मः

 

व्याकरण Question 2:

एधाम्बभूव इति कस्मिन् पुरुषे अस्ति?

  1. उत्तमे।
  2. प्रथममध्यमे।
  3. मध्यमे।
  4. प्रथमउत्तमे।
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : प्रथमउत्तमे।

व्याकरण Question 2 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : एधाम्बभूव यह रूप किस पुरुष में होता है?

स्पष्टीकरण : 

  • परोक्षेलिट् इस सूत्र से 'परोक्ष भूत काल' में लिट् लकार का प्रयोग होता है। जो कार्य आँखों के सामने पारित होता है, उसे परोक्ष भूतकाल कहते हैं।
  • लिट् लकार के दो प्रकार होतें है - 
    • आमन्त/आमयुक्त
    • अभ्यस्त
  • आमन्त लिट् लकार में यह प्रक्रिया होती है - 
    • धातु + आम् + अस्/कृ/भू धातु + लिट् लकार प्रत्यय

एध् धातु के लिट् लकार में रूप इस प्रकार होंगे -  

 

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमपुरुष

एधाञ्चक्रे / एधाम्बभूव / एधामास

एधाञ्चक्राते / एधाम्बभूवतुः / एधामासतुः

एधाञ्चक्रिरे / एधाम्बभूवुः / एधामासुः

मध्यमपुरुष

एधाञ्चकृषे / एधाम्बभूविथ / एधामासिथ

एधाञ्चक्राथे / एधाम्बभूवथुः / एधामासथुः

एधाञ्चकृढ्वे / एधाम्बभूव / एधामास

उत्तमपुरुष

एधाञ्चक्रे / एधाम्बभूव / एधामास

एधाञ्चकृवहे / एधाम्बभूविव / एधामासिव

एधाञ्चकृमहे / एधाम्बभूविम / एधामासिम

 

अतः स्पष्ट है, 'प्रथमउत्तमे' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

व्याकरण Question 3:

'लृट्' इति लकारः कस्मिन् काले प्रयुज्यते ?

  1. भविष्यत्काले।
  2. भूतकाले।
  3. वर्तमानकाले।
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : भविष्यत्काले।

व्याकरण Question 3 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - 'लृट्' यह लकार किस लकार में योजित है?

लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है

'गम्-गच्छ' - लृट् लकार भविष्यकाल के रूप

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथम पुरुष

गमिष्यति

(जाएगा)

गमिष्यतः

(वह दो जाएंगे)

गमिष्यन्ति

(वह सब जाएंगे)

मध्यम पुरुष

गमिष्यसि

(जाओगे)

गमिष्यथः

(तुम दो जाओंगे)

गमिष्यथ 

(तुम सब जाओंगे)

उत्तम पुरुष

गमिष्यामि

(मैं जाऊंगा)

गमिष्यावः

(हम दो जाएंगे)

गमिष्यामः

(हम सब जाएंगे)

Additional Information

इन धातुओं से दस लकारों में रूप बनते है-

लकारों के नाम तथा अर्थ -

i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति

ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है - 

  • आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ
  • प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ
  • अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि
  • आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव

iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्

iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्' विधिलिङ् लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है - 

  • विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्। 
    • छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः
  • निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्
  • आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे
  • प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्
  • इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत

v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढे़गा - सः पठिष्यति

vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढे़गा - सः पठिता

vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः पठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्

viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्

ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्

x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ

व्याकरण के दृष्टि से धातु शब्द का अर्थ है - "शब्द योनि" 

व्याकरण Question 4:

नर्द धातोः लोट्-उत्तमपुरुष-बहुचनरुपं किम्?

  1. ननर्द।
  2. नर्दाम।
  3. नर्दाव।
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : नर्दाम।

व्याकरण Question 4 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - नर्द् धातु लोट् लकर उत्तमपुरुष-बहुचन का रुप क्या होगा?

स्पष्टीकरण -

'नर्द्' धातोः लोट्-उत्तमपुरुष-बहुचनरुपं - नर्दाम।

'नर्द्' धातु लोट् लकर उत्तमपुरुष-बहुचन का रुप - नर्दाम।

Hint'नर्द' धातु के लोट् लकार का रुप-

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमपुरुषः नर्दतु नर्दताम् नर्दन्तु
मध्यमपुरुषः नर्द नर्दतम् नर्दत
उत्तमपुरुषः नर्दानि नर्दाव नर्दाम

व्याकरण Question 5:

स्पर्ध-धातोः मध्यमपुरुषैकवचनं किम्?

  1. स्पर्दते।
  2. स्पर्धामि।
  3. स्पर्धते।
  4. स्पर्धसे।
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : स्पर्धसे।

व्याकरण Question 5 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - ‘स्पर्ध’ धातु का मध्यम-पुरुष, एकवचन में क्या रूप है?
उत्तर - स्पर्धसे ।
स्पष्टीकरण  -स्पर्ध संघर्षे’ धातुः अयम् आत्मनेपदी। यस्य मध्यमपुरुषस्य एकवचने रूपं ‘स्पर्धसे’ इति भवति।

Hint स्पर्ध धातोः रूपाणि –

पुरुष एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमपुरुषः स्पर्धते स्पर्धेते स्पर्धन्ते
मध्यमपुरुषः स्पर्धसे स्पर्धेर्थे स्पर्धध्वे
उत्तमपुरुषः स्पर्धे स्पर्धावहे स्पर्धामहे
 


Important Points

धातु रूपेषु सर्वदा तिङ् प्रत्ययों की संख्या 18 है, उनमें से 9 प्रत्यय परस्मैपद तथा 9 प्रत्यय आत्मनेपद है।

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माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं

  1. 14
  2. 13
  3. 15
  4. 10

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : 14

व्याकरण Question 6 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण:- पाणिनी ने अपने अष्टाध्यायी में १४ माहेश्वर सूत्र बताये है। वह इसप्रकार हैं-

१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।

इन माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र के साथ 'चतुर्दश सूत्र' से भी जाने जाते है।

अतिरिक्त जानकारी

उत्पत्ति:- एक आख्यायिका के अनुसार पाणिनि को यह सूत्र भगवान शङ्कर से प्राप्त हुए।

नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्

उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥

अर्थ:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"

इस तरह से इन माहेश्वर सूत्रोंकी उत्त्पत्ति है। इन्हे शिवसूत्र भी कहते हैं। इन्ही १४ शिवसूत्रोंको पाणिनि ने भगवान शङ्कर से प्राप्त किया और उनसे अष्टाध्यायी के प्रत्याहार बनाये। इसलिए इन सूत्रों को प्रत्याहार विधायक सूत्र भी कहते हैं।

'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-

  1. उ उपसर्ग
  2. उप उपसर्ग
  3. उत् उपसर्ग
  4. आ उपसर्ग

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उत् उपसर्ग

व्याकरण Question 7 Detailed Solution

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धात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्‍न शब्‍दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्‍दों को उपसर्ग कहते है -

"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।

प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"

उदाहरण 

उपसर्ग  निर्मित शब्द 
वि विराम, विश्राम 
परि परिहार, परिपूर्ण 
प्र प्रगति, प्रतिष्ठा

उत्

उत्थान, उद्घाटन 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-

उपसर्ग

अर्थ

उदाहरण

प्र

प्रकृष्ट

प्रगति, प्रतिष्ठा

परा

निषेध, विपरित

पराजितं पराभवति

अप

न्यूनता या हीनता

अपकरोति, अपहरति

सम्

अच्छा

संगच्छति, संस्करोति

अपि ढ़कना अप्यस्ति

अनु

अनुकरण

अनुगमनं अनुकरोति

अव

निचे

अवगच्छति, अवजानन्ति

निर्

निषेध

निर्गच्छति, निराकरोति

निस्

निषेध

निष्कारणं, निस्सरति

दुस्

कठिन, दुष्कर

दुष्टः, दुष्प्रयोजन

दुर्

कठिन, दुष्कर

दुर्गति, दुर्बोध्य

वि

विशिष्ट

विजयते, विगत

आङ्

सिमा

आजिवनम्, आकण्ठम्

नि

निचे

निगदति, निपतति

अधि

प्रधानता या आधार

अधिराजते, अधिहरि

अति

अतिशय

अत्यन्त, अत्याचारः

सु

अच्छा

स्वागतं, सुशोभते

उत्

ऊँचा

उत्कर्षं, उत्पतति

अभि

समीप

अभ्यागतः, अभ्यासः

प्रति

विपरित

प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत्

परि

चारो ओर

पर्यावरणं, परिवर्तनम्

उप

समीप

उपकार, उपहार

मातृ शब्द का पंचमी विभक्ति का एकवचन रूप है-

  1. मातृस्य
  2. मातातः
  3. मातात्
  4. मातुः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : मातुः

व्याकरण Question 8 Detailed Solution

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'मातृ' यह प्रातिपदिक 'ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द है। इसके विभिन्न विभक्ति-वचन में रूप निम्नलिखित हैं-

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

माता

मातरौ

मातरः

द्वितीया

मातरम्

मातरौ

मातृ

तृतीया

मात्रा

मातृभ्याम्

मातृभिः

चतुर्थी

मात्रे

मातृभ्याम्

मातृभ्यः

पन्चमी

मातुः

मातृभ्याम्

मातृभ्यः

षष्ठी

मातुः

मात्रोः

मातृणाम्

सप्तमी

मातरि

मात्रोः

मातृषु

सम्बोधन

हे माता!

हे मातरौ!

हे मातरः!

 

उपर्युक्त सारणी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि 'मातृ' शब्द की पञ्चमी विभक्ति एकवचन में 'मातुः' रूप होता है।

Additional Information

मातृ की तरह दुहितृ, स्वसृ, ननादृ यह कुछ अन्य 'ऋकारान्त' स्त्रीलिंग पद है।

'नदी' शब्द का सप्तमी, एकवचन रूप है 

  1. नदीयाम् 
  2. नद्याम् 
  3. नदौ 
  4. नदायाम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : नद्याम् 

व्याकरण Question 9 Detailed Solution

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नदी’ का अर्थ ‘नदी’ या 'सरिता' होता है। ‘नद्याम् शब्द रूप – ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन’ है।

नदी’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित है:-

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

नदी

नद्यौ

नद्यः

द्वितीया

नदीम्

नद्यौ

नदीः

तृतीया

नद्या

नदीभ्याम्

नदीभिः

चर्तुथी

नद्यै

नदीभ्याम्

नदीभ्यः

पन्चमी

नद्याः

नदीभ्याम्

नदीभ्यः

षष्ठी

नद्याः

नद्योः

नदीनाम्

सप्तमी

नद्याम्

नद्योः

नदीषु

सम्बोधन

हे नदि!

हे नद्यौ!

हे नद्यः!

'दास्यति' क्रियापद में लकार है

  1. लट्
  2. लोट्
  3. लृट्
  4. विधिलिड्.

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : लृट्

व्याकरण Question 10 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण - 'दास्यति' का अर्थ होता है, 'देगा/देगी' जो भविष्यकाल है।

दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-

पुरूष

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमपुरूष

दास्यति

दास्यतः

दास्यन्ति

मध्यमपुरूष

दास्यसि

दास्यथः

दास्यथ

उत्तमपुरूष

दास्यामि

दास्यावः

दास्यामः

 

अतः स्पष्ट है कि 'दास्यामि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' प्रथम पुरुष एकवचन है।

Hint

लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। 

जैसे - वह पढेगा - सः पठिष्यति

लृट् लकार क सूत्र = धातु + स्य + लट्लकार प्रत्यय

उदा.

  • पठिष्यति = पठ् + स्य + ति
  • लेखिष्यति = लिख् + स्य + ति
  • भविष्यति = भू-भव् + स्य + ति
  • दास्यत्ति = दा + स्य + ति

Additional Information 

लकार - संस्कृत में दस लकारों का वर्णन मिलता है -

लकारों के नाम तथा अर्थ - 

i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति

ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है - 

  • आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ
  • प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ
  • अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि
  • आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव

iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्

iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्विधिलिङ्ग लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है - 

  • विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्। 
    • छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः
  • निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्
  • आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे
  • प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्
  • इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत

v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिष्यति

vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिता

vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः पठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्

viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्

ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्

x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत  काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ

'दा' धातु के लृट लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में रूप बनता है-

  1. ददासि
  2. दास्यन्ते
  3. दत्ते
  4. दास्यसि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : दास्यसि

व्याकरण Question 11 Detailed Solution

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दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-

पुरूष

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमपुरूष

दास्यति

दास्यतः

दास्यन्ति

मध्यमपुरूष

दास्यसि

दास्यथः

दास्यथ

उत्तमपुरूष

दास्यामि

दास्यावः

दास्यामः

 

अतः स्पष्ट है कि 'दास्यसि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' मध्यम पुरुष एकवचन है।

अव्यय शब्द-समूह हैं 

  1. सा, ते, यूयम् 
  2. अत्र, तत्र, तस्य 
  3. सर्वत्र,अधुना, उपरि 
  4. नमः, सह, ज्येष्ठः 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : सर्वत्र,अधुना, उपरि 

व्याकरण Question 12 Detailed Solution

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अव्यय वह शब्द होते है जिनका कभी व्यय नहीं होता। लिंग वचन कारक आदि सम्बंधित परिवर्तन अव्ययों में नहीं होते। इस तरह से अव्यय अविकारी होते है और नाम, सर्वनाम, विशेषण आदि विकारी होते है। 

       सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।

       वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥

(अर्थ:- तीनों लिंगों में, सभी विभक्तियों और सभी वचनों में जो समान ही रहता है, रूप में परिवर्तन नहीं होता, वह अव्यय होता है।)

Important Points

विकल्पोंका स्पष्टीकरण:-

  • सा, ते, युयम्- ये सर्वनाम हैं।  
  • अत्र, तत्र, तस्य- अत्र, तत्र अव्यय और तस्य सर्वनाम है।
  • सर्वत्र, अधुना, उपरि- ये सभी  अव्यय हैं 
  • नमः, सह, जेष्ठः- नमः, सह अव्यय और जेष्ठः सर्वनाम है।

अतः यह स्पष्ट है कि  'सर्वत्र, अधुना, उपरि'  शब्द अव्यय ।

'वसन्तर्तुः' मे कौन सन्धि है? 

  1. यण् सन्धि 
  2. गुण सन्धि 
  3. वृद्धि सन्धि 
  4. व्यञ्जन सन्धि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : गुण सन्धि 

व्याकरण Question 13 Detailed Solution

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'वसन्तर्तुः' का संधि विच्छेद 'वसन्त + ऋतु:' होगा।

सूत्र- आद् गुणः।

नियम- अ/आ + इ/ई = ए,  अ/आ + उ/ऊ = ओ,  अ/आ + ऋ/ॠ = अर्

यहाँ सन्धि- वसन्त + ऋतु = वसन्तर्तुः

Important Points

विकल्पों का स्पष्टीकरण–

स्वर सन्धि

सूत्र

नियम

उदाहरण

यण् सन्धि

इको यणचि

इ/ई + विजातीय स्वर = य् 

उ/ऊ + विजातीय स्वर = व्
ऋ/ॠ + विजातीय स्वर = र्

नदी + अत्र = नद्यत्र

मधु + इति = मध्विति

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

गुण सन्धि

आद् गुणः

अ/आ + इ/ई = ए

अ/आ + उ/ऊ = ओ

अ/आ + ऋ/ॠ = अर्

उप + इन्द्र = उपेन्द्र

यथा + उचितम् = यथोचितम्

देव + ऋषि = देवर्षि

वृद्धि सन्धि

वृद्धिरेचि

अ/आ + ए/ऐ = 'ऐ

अ/आ + ओ/औ = औ

मम + एक = ममैक

जल + ओघः = जलौघः

Additional Information

विशेष–

दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।जैसे-

  • विद्या + आलय = विद्यालय।
  • रमा + ईश = रमेश
  • न + एकः = नैकः
  • सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्

संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,

संधि

परिभाषा

उदाहरण

स्वर

स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के 

मेल से विकार उत्पन्न होता है।

 विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

महा + ईशः = महेशः

व्यंजन

एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या 

स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है।

अहम् + कार = अहंकार

उत् + लासः = उल्लास

विसर्ग

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के 
मेल से विकार उत्पन्न होता है।

दुः + आत्मा = दुरात्मा

निः + कपटः = निष्कपटः

'गाः' पद में विभक्ति वचन है

  1. प्रथमा बहुवचन
  2. द्वितीया बहुवचन
  3. पंचमी एकवचन
  4. सप्तमी एकवचन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : द्वितीया बहुवचन

व्याकरण Question 14 Detailed Solution

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गाः’ का अर्थ होता है गायों को, ओकारान्त 'गो' शब्द का यह द्विवचन रूप है। 

ओकारान्त ‘गो’ शब्द का विभिन्न विभक्तियों और वचनों में रूप चलता है - 

ओकारान्त ‘गो’ शब्द

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

गौः

गावौ

गावः

द्वितीया

गाम्

गावौ

गाः

तृतीया

गवा

गोभ्याम्

गोभिः

चर्तुथी

गवे

गोभ्याम्

गोभ्यः

पन्चमी

गोः

गोभ्याम्

गोभ्यः

षष्ठी

गोः

गवोः

गवाम्

सप्तमी

गवि

गवोः

गोषु

सम्बोधन

हे गौः!

हे गावौ!

हे गावः!

उष्म वर्णों का बोधक प्रत्याहार है -

  1. यण् 
  2. शल् 
  3. हश् 
  4. बश्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : शल् 

व्याकरण Question 15 Detailed Solution

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`शल उष्माणः' सूत्र के अनुसार 'शल्' प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले 'श्, ष्, स्, ह्' वर्ण उष्म वर्ण होते हैं।

Additional Information

`आदिरन्त्येन सहेतासूत्र के अनुसार आदि और अंत में 'इत्' से प्रत्याहार बनते है। उदा. 'अच्' में 'अ' से लेकर 'च्' तक के 'इत्' के अलावा के वर्ण आते है। पाणिनि के १४ माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बने है-

१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।

इन माहेश्वर सूत्रों से अनेकों प्रत्याहार बनते हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण प्रत्याहार है-

प्रत्याहार:- अण्, अण्, इण्, यण्, अक्, इक्, उक्, एङ्, अच्, इच्, एच्, ऐच्, अट्, अम्, अल्, यम्, ङम्, ञम्, यञ्, झष्, भष्, अश्, हश्, वश्, झश्, जश्, बश्, छव्, यय्, मय्, झय्, खय्, चय्, यर्, झर्, चर्, शर्, हल्, वल्, रल्, झल्। इनमें कुछ प्रमुख इसप्रकार हैं- 

  • इक्- इ, उ, ऋ, लृ 
  • यण्- य्, व्, र्, ल् 
  • अक्- अ, इ, उ, ऋ, लृ 
  • अच्- सभी स्वर वर्ण- अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ 
  • एच्- ए, ओ, ऐ, औ
  • हल्- सभी व्यञ्जन वर्ण आते हैं।
  • हश्- वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम वर्ण तथा य्, व्, र्, ल् आते हैं। 
  • जश्- वर्गों के तृतीय वर्ण - ज्, ब्, ग्, ड, द्।
  • शल् - श्, ष्, स्, ह्
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